SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाक्कथन । [९ प्रकट करती थी, जो उस समय संसारभरमें नीलनदीके अतिरिक्त सबसे बड़ी मानी जाती थी। सारे देशका विस्तार अर्थात् पूर्वसे पश्चिमतक ११४९ मील और उत्तरसे दक्षिणतक १८३८ मील था। यह वर्णन भारतकी वर्तमान आकृतिसे प्रायः ठीक बैठता है। जिस प्रकार भारत मान एक महाद्वीप है, उसी प्रकार तब था । आन 'इस देशकी उत्तरी स्थलसीमा १६०० मील, पूर्वपश्चिमकी सीमा लगभग १२०० और पूर्वोत्तर सीमा लगभग ५०० मील है । समुद्रतटका विस्तार लगमग ३५०० मील है ।' कुल क्षेत्रफल १८,०२,६५७ वर्गमील है। हां, एक बात उस समय अवश्य विशेष थी और वह यह थी कि चन्द्रगुप्त मौर्यने यूनानी राना सेल्यूकसको परास्त करके अफगानिम्तान, कांधार मादि पश्चिम सीमावर्ती देश भी भारत में सम्मिलित कर लिये थे। भारतके विविध प्रान्तोंमें परस्पर एक दूसरेसे विभिन्नता पाई जाती है और यहां के निवासी मनुष्य भी सब भारतकी एकता। 'एक नसलके नहीं हैं। मेगस्थनीज भी बतलाता है कि भारतकी वृहत् मारुतिको एक ही देश लेते हुये, उसमें अनेक भौर भिन्न जातियोंके मनुष्य रहते मिलते हैं; किन्तु उनमेसे एक भी किसी विदेशी नसलके वंशन नहीं थे। उनके आचारविचार प्रायः एक दुसरेसे बहुत मिलते जुलते थे। इसी कारण चूनानी भी सारे देशको एक ही मानते थे और सिकन्दर महान्की बमिलापा भी समग्र देशपर अपमा सिक्का जमानेकी थी। भारतीय १-मेए ३. पृ. ३०।२-पूर्व पृ. १५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy