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________________ २५२1 संक्षिप्त जैन इतिहास । जैनोंके दो प्रधान नगरों तक्षशिला और उज्जैनीमें व्यतीत हुमा हो, यह संभव नहीं है कि वह अकारण ही अपने वंशगत धर्मको तिलांजलि देदे । इस विषयमें अगाडीकी पंक्तियोंसे बिल्कुल स्पष्ट होजायगा 'कि वास्तवमें अशोक मूलमें जैनधर्मानुयायी था। उज्जैनमें लिप्त समय वह थे, तब उनका विवाह विदिशागिरि (बेसनगर-भिलसाके निकट) के एक श्रेष्टीकी कन्यासे हुआ था। उनकी पट्टरानी क्षत्रीयवर्णकी थी और वह पाटलिपुत्रमें थी । अशोक जब राना होकर पाटलीपुत्र पहुंचे तब उनके साथ उनके सब पुत्र-पुत्रियां भी वहां गये थे; किन्तु पट्टरानी आदिके अतिरिक्त उनकी अन्य स्त्रियां उज्जैनमें रहीं थीं। अशोकने इनका उल्लेख 'अवरोधन ' रूपमें किया है । इससे अनुमान होता है कि यह महिलाएं परदेमें रहतीं थीं। किन्तु परदेका भाव यहांपर इतना ही होसक्ता है कि वह जनसाधारणकी तरह आम तौरसे जहां-तहां मा जा नहीं सक्ती होंगी। राजमर्यादाका पालन करते हुये, उनके जाने-मानेमें रुकावट नहीं थीं। यदि यह बात न होती तो अशोककी रानियां महात्मालोगोंके दर्शन नहीं कर सक्ती थीं और न दान-दक्षिणादि देसक्तीं थीं। बौद्धशास्त्र अशोकको प्रारम्भमें एक दुष्ट व्यक्ति प्रगट करते हैं और कहते हैं कि उनने अपने ९९ भाइयोंकी हत्या करके राज्यसिंहासन पर अधिकार जमाया था; किन्तु उनके शिलालेखोंसे उनके राज्यकालमें भाइयों और बहिनोंका नीवित रहना प्रमाणित है । अतः बौद्धोंका यह कथन कोरा कल्पित है। तब १-भाअशो० पृ. १३ । २-अशोक० पृ. २३ व भाइ पृ० ६१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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