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________________ मौर्य साम्राज्य | [ २४९ काश्मीरमें उसने एक नई राजधानी वसाई; जिसका नाम श्रीनगर रक्खा । नेपाल में भी ललितपाटन नामक एक नई राजधानी स्थापित की थी । दक्षिण भारत में नेलोर प्रदेशसे लेकर पश्चिमी किनारे अर्थात कल्याणपुरी नदीतक उसका राज्य थे । इस प्रदेश के दक्षिमैं जो पांड्य, केरलपुत्र और सतियपुत्र तामिल राज्य थे, वे स्वतंत्र और स्वाधीन थे । इस प्रकार दक्षिणके घोड़ेसे भागके अतिरिक्त सारे भारतवर्ष में उसीका साम्राज्य था । इस बृद्दत साम्राज्यको अशोकने कई भागों में विभक्त कर रक्खा था। इनमें मध्यवर्ती भागके अतिरिक्त शेष भागों में चार राजप्रतिनिधि - संभवतः राजकुमार राज्य करते थे । एक राजप्रतिनिधि तक्षशिला में रहता था; दूसरा कलिंग प्रांतकी राजधानी तोषलीमें, तीसरा उज्जैन में और चौथा दक्षिण में रहकर सारे दक्षिणी देशपर शासन करता था । उज्जैन के राज प्रतिनिधि मालवा, काठिीयावाड़ और गुजरातका शासन प्रबंध करता था । कलिंगके शासनकी अशोकको बड़ी फिकर रहती थी । वहां पर उसके राज्यप्रतिनिधि कभी२ अच्छा शासन नहीं करते थे । इसलिये उसने वहां पर दो शिलालेख खुदवाकर राजप्रतिनिधियों को समुचित शिक्षा दी थी। * अशोक ने शासन प्रबन्ध में धर्मको प्रधान स्थान दिया था । अशोकका शासन इसी कारण उसके राज्य में राष्ट्रका रूप बदल गया था । राजनीति संबंधी कार्योंमें धार्मिक कार्य आ मिले थे । इसलिये 'राज्यका कर्तव्य न केवल देशमें शांति स्थापित रखना और प्रभाकी रक्षा करना था, बरन धर्मका प्रचार प्रबन्ध । १- लाभाइ० पृ० १७५-१०६ । २-अब.. पृ० १७०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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