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________________ २४४] संक्षिप्त जैन इतिहास । सोलह स्वप्न देखे थे; जिनका फल श्री भद्रबाहुनी श्रुतकेवलीने बतलाया था। इसका निष्कर्ष इस कलिकालमें जैनधर्म और आर्य मर्यादाका हास होना था; किन्तु पं० जुगलकिशोरनी मुख्तार इन स्वप्नोंको कल्पित ठहराते हैं । जो हो, इतना स्पष्ट है कि जैनधर्ममें और खासकर दिगम्बर जैनधर्ममें चंद्रगुप्त का स्थान बड़े गौरव और महत्वका है। जैनियोंने उनकी जीवन घटनाओंको पत्थरकी शिलाओंपर सुन्दर चित्रकारी में अंकित कर रक्खा है। श्रवणबेलगोलके चन्द्रगिरिवाले मंदिरों में सम्राट् चन्द्रगुप्त और उनके गुरु भद्रबाहुनीके जीवन सम्बन्धी नयनाभिराम चित्रपट अपूर्व हैं और वह आज भी सम्राट चंद्रगुप्तके जैनत्वकी स्पष्ट घोषणा कर रहे हैं। चंद्रगुप्त के नामसे ही इस पर्वतका नाम 'चन्द्रगिरि' हुमा है और वहांपर एक गुफामें उनके गुरुके चरणचिन्ह भी विराजमान हैं। जैन शिलालेखोंमें सम्राट चन्द्रगुप्तकी मुनि अवस्थाका स्मरण बड़े गौरवास्पद शब्दों में हुआ मिलता है । उन्हें मुनींद्र चन्द्रगुप्त व महामुनि चन्द्रगुप्त अथवा चन्द्र प्रकाशोज्वल सान्दकीर्ति चंद्रगुप्त या मुनिपति चन्द्रगुप्त लिखा गया है। और यह विशेषण उनके समान एक महान् और तेजस्वी राजर्षिके लिये सर्वथा उचित थे। महामुनि चन्द्रगुप्तने श्रवणबेलगोलसे ही समाधिमरण द्वारा स्वर्गलाभ किया था। १-भद्रबाहु चरित्र पृ० ११-३२ । २-जैहि० भा० १३ पृ० २३६ । ३-हिवि० भा० ७ पृ० १५०, जैसि० भा० १ कि० २-३ पृ० ८५ व ममैप्राजैस्मा० पृ० २०५ । ४-जैसिभा. भा०किरण २-३ पृ०७-८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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