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________________ प्राक्कथन । [ ५ जिनमें ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र आदि सव हीका समावेश हुआ समझिये अर्थात जैन होते हुये भी प्रत्येक व्यक्तिकी जाति ज्योंकी त्यों रहती है, इसमें संशय नहीं है; यद्यपि किसी अजैन के जैनधर्म में दीक्षित होते समय उसकी आजीविका-वृत्ति और रहनसहनके अनुसार उसको उपयुक्त जातिमें सम्मिलित किया जा सकता है । ' अत: जैनधर्म विषयक इम संक्षिप्त इतिहास में जैन महापुरुषोंका और जैनधर्म सम्बन्धी विशेष घटनाओंका परिचय एवं उसका प्रभाव भिन्न कालोंमें उस समयकी परिस्थितिपर कैंसा पड़ा था, यह बतलाना इष्ट है । इसके प्रथम भाग में भगवान पार्श्वनाथमी तका सामान्य परिचय प्रकट किया जाचुका है । इस भागमें भगवान महावीरजी के समय से उपरान्त मध्यकालतक के जैन इतिहासको संक्षेपमें प्रकट किया जाता है । प्रथम भाग में जैन भूगोलमें भारतवर्षका स्थान और उसका प्राकृतरूप आदिका परिचय कराया नाचुका है । सचमुच किसी देशकी प्राकृतिक स्थितिका प्रभाव अपनी भारतकी प्राकृत स्वास विशेषता रखता है । उपदेशका इतिहास दशाका प्रभाव । ही उस प्रभावके ढंगपर ढल जाता है। भारतके विषय में कहा गया है कि उसकी प्राकृतिक स्थितिका सामाजिक संस्थाओं और मनुष्योंकी रहनसहन पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। धीरे‍ बड़ी बड़ी नदियोंकि किनारे सुरम्य नगर बस गये जो कालान्तर में व्यापार के प्रसिद्ध केन्द्र होगये । मूमिके उर्बरा होनेसे देश में धन १- आदिपुराण पर्व ३९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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