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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
सदाचार और सुनीतिकी बढ़वारीका विश्वास था । चन्द्रगुप्तके विषयमें कहा जासक्ता है कि उसका यह कठोर दण्डविधान सफल हुआ था | मेगास्थनीज लिखता है कि जितने समय तक यह चंद्रगुप्तकी सेना में रहा, उस समय चार लाख मनुष्योंके समूह में कभी किसी एक दिन में १२०) रुपयेसे अधिक की चोरी नहीं नहीं हुई। और यह प्रायः नहींके बराबर थी। भारतीय कानूनकी शरण बहुत कम लेते थे । उनमें वायदाखिलाफी और खयानत के मुकद्दमें कभी नहीं होते थे । उन्हें साक्षियों की भी जरूरत नहीं पड़ती थी । वे 1 भारतीय अपने घरोंको विना ताला लगाये ही छोड़ देते थे । ' इस उल्लेख से स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्तके दण्ड विधानका नृशंसरूप जनताको सदाचारी और राज्याज्ञानुवर्ती बनाने में सहायक था । इस दशामें उसका प्रयोग अधिकता के साथ प्रायः नहीं होना संभव है।
चन्द्रगुप्तकी विशाल सेनाकी व्यवस्थाके लिये एक सैनिक विभाग था । सेना के चारों भाग- (१) पैदल सैनिक विभाग | सिपाही, (२) अश्वारोही, (३) रथ, ( ४ ) हाथीका प्रबन्ध चार पंचायतों द्वारा होता था। पांचवीं पंचायत कमसरियट विभाग और सैनिक नौकर-चाकरोंका प्रबन्ध करती थी । छठी पंचायत जहाजों का प्रबन्ध करती थी । सेनाको वेतन नगद मिलता था। जहाज आदि सब यहीं बनाये जाते थे। इस व्यवस्थासे स्पष्ट है कि चंद्रगुप्तका सैनिक प्रबंध सर्वाङ्ग पूर्ण और सराहनीय था । यदि उसकी व्यवस्था ठीक न होती, तो इतने बड़े साम्राज्यपर वह सहसा अधिकार न जमा सक्ता !
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१ - मेऐइ ० पृ० ६९-७० । २-भाइ० पृ० ६६ ।
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