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________________ सिकन्दर-आक्रमण व तत्कालिन जैन साधु [१९७ अतः इन साधुका शुद्ध नाम ठीक है, जो जैन साधुओं के नामके समान है। मुनि कल्याणने इस विदेशीके प्रचण्ड लोभ और तृष्णाके वश हो घोर कष्ट सहते हुये वहां आया देखकर जरा उपहातभाव धारण किया और कहा कि पूर्वकालमें संसार सुखी था-यह देश अनानसे भरपूर था। वहां दृष और अमृत आदिके झरने वहते ये, किन्तु मानव समान विषयभोगोंके माधीन हो घमण्डी और उद्दण्ड होगया। विधिने यह सब सामग्री लुप्त करदी और मनुप्यके लिये परिश्रमपूर्वक जीवन विताना (A life of toil) नियत कर दिया । संसारमें पुनः संयम मादि सद् गुणों की वृद्धि हुई और अच्छी चीनों की बाहुल्यता भी होगई ! किन्तु अब फिर मनुष्यों में असन्तोष और उच्छृङ्खलता आने लगी है और वर्तमान अवस्थाका नष्ट होनाना भी मावश्यक है। सचमुच इप्त वक्तव्य द्वारा मुनि कल्याणने भोगभूमि और कर्मभूमिके चौथे काळ और फिर पंचमकालके प्रारंभका उल्लेख किया प्रतीत होता है। ___उनने यूनानी अफसरसे यह भी कहा था कि 'तुम हमारे समान कपड़े उतारकर नग्न होनाओ और वहीं शिलापर मासन जमाकर हमारे उपदेशको श्रवण करो। बेनारा यूनानी अफसर इस प्रस्तावको मुनकर बड़े असमंजसमें पड़ गया था; किन्तु एक जैन मुनिके लिये यह सर्वथा उचित था कि वह संसारमें बुरी तरह फंसे हुये प्राणी उद्धार करने भावसे उसे दिगम्बर मुनि होना· १-ऐह, पृ. ७० । २-ऐ६० पृ. ७०। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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