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________________ सिकन्दर-आक्रमण व तत्कालिन जैन साधु [१९३ सलाह इन श्रमणोंने दी थी।' जैन मुनि सदा ही ऐसी शिक्षा दिया करते हैं। (६) श्रमण और श्रमणी ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हैं। श्रमणी तत्वज्ञान का अभ्यास करती हैं । जनसंघके मुनि आर्यिकाओं को पूर्ण ब्रह्मचर्यका पालन करना अनिवार्य होता है। मार्यिकायें तत्वज्ञानका खासा अध्ययन करती हैं । (७) श्रमण संघमें प्रत्येक व्यक्ति सम्मिलित होसक्ता है।' जैनसंघका हार भी प्रत्येक नीवित प्राणीके लिये सदासे खुला रहा है। (८) 'श्रमण नग्न रहते हैं । वे सत्य का अभ्यास करते हैं। भविष्य विषयक वक्तव्य प्रगट करते हैं। और एक प्रकारके 'पिरामिड' (Pyramid) की पूजा करते हैं, जिनके नीचे वे किसी महापुरुषकी अस्थियां रक्खी हुई मानते हैं ।" नग्न रहना, सत्यका अभ्याप्त करना और भविष्य सम्बंधी वक्तव्य घोषित करना नैन मुनियों के लिये कोई अनोखी बात नहीं है। ज्योतिष और भविष्य फल प्रगट करने के लिये वे अनैन ग्रन्थों में भी सन्मानकी दृष्टिसे देखे गये हैं। सिद्ध प्रतिमा संयुक्त स्तूप ठीक 'पिरामिड ' असे होते हैं। नैनों में इनकी मान्यता बहु प्राचीनकालसे है । यह स्तुर १-ऐइ० पृ. ७० । २-ऐइ. १० १८३ व मेऐइ० पृ.१.३ । ३-ऐ१०, पृ० १६७ । ४-वीरे, वर्ष५ पृ. २३०-२३४ । ५-ऐइ०, पृ. १८३ । ६-न्यायबिन्दु (अ. ३) में श्री ऋषभ व वदमान महावीरजीको ज्योतिष विद्या निगात होने के कारण सर्वज्ञके आदर्शरूप प्रगट किया है। पुद्रा राइस (अं० ४), प्रबोध चन्द्रोदय (. ३) भादि वर मुनि भविष्य विषयक घोषगा करते बताये गये है। देखो जा. भाग 1४ पृ. ४५-६१। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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