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________________ सिकन्दर - आक्रमण व तत्कालिन जैन साधु [ १९१ रवार में पहुंचते थे और मान्यता पाते थे । यदि उनका वर्षफल आदि कोई कार्य ठीक नहीं उतरता तो उन्हें जन्मभर मौन रहने की आज्ञा होती थी। इस कार्यमें श्रमण भी भाग ले सक्ते थे । ब्राह्मणों ने ऐसे भी थे, जो वानप्रस्थ दशामें रहते थे । 7 श्रमण भी कई तरह के थे; किंतु उनमें मुख्य वह थे जो नग्न " • जैनोसोफिस्ट' रहते थे। यह ब्राह्मण और बौद्धोंसे भिन्न थे। इनको विद्वानोंने दिगम्बर जैन मुनि माना है; दिगम्बर जैन साधु थे । यद्यपि कोई विद्वान इन्हें आजीविक साधु अनुमान करते हैं । किंतु इनका यह अनुमान निर्मूल है। यूनानियोंने इन नग्न साधुओंकी मिन विशेष क्रियाओं का उल्लेख किया है; उनसे इनका दिगम्बर जैन मुनि होना सिद्ध है । उदाहरण के लिये देखिये :-- (?) यूनानियोंका कथन है कि " श्रमण कोई शारीरिक परिश्रम (Labour =प्रारम्भ ) नहीं करते हैं; नग्न रहते हैं; सर्दीमें खुली हवामें और गरमियों में खेतों में व पेड़ों के नीचे शासन जमाते हैं; और फलों पर जीवन यापन करते हैं ।" यह सब क्रियायें जैन मुनियोंके जीवन में मिलती हैं । जैन मुनि आरम्भके सर्वथा त्यागो होते हैं । वे पानीतक स्वयं ग्रहण नहीं करते यह बौद्धशास्त्रों से भी प्रगट है ।" उनका नग्नभेष भी जैन शास्त्रोंके अनुकूल है; जैसे कि पहले लिखा नाचुका है। वनों और गुफाओं आदि एकान्त स्थानमें जैन मुनिको रहनेका आदेश है । तथा वह निरामिषमोजी और उद्दिष्ट त्यागी होते हैं । १- ऐ३० पृ० ४७ । २ जसि . ११ कि० १-१० ८ ॥ ३- ३० पृ० ४७ । १-मनेडु० ई २२३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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