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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास | ( १० ) सिकन्दर महानूका आक्रमण और तत्कालीन जैन साधु । ( ई० पू० ३२७ - ३२३ ) १८६ ] सिकन्दर महान् । यूनान में मेसीउन नामक एक छोटेसे देशका राजा फैलकूस (फिलिप ) था । इसीका पुत्र सिकन्दर था । सिकन्दर बड़ा साहसी, पराक्रमी और प्रतिभाशाली था । उसने अपने पिता के छोटेसे राज्यका खूब विस्तार किया था । और वह बड़े साम्राज्यका स्वामी था । तीन वर्षमें ( ३३४३३१ ई० पू० ) उसने एशिया माइनर, सिरिया, मिस्र, ईरान, आदि देशोंको जीत लिया था और फिर भारतको जीतनेका संकल्प करके वह फर्वरी अथवा मार्च सन् ३२६ ई० पू० में ओहिन्द नामक स्थानपर सिंधु नदी पार करके भारतमें आपहुंचा था । पहिले ही उसके मार्ग में तक्षशिलाका हिंदू राज्य आया था; किन्तु यहांके शिशुगुप्त नामक राजाने सिकन्दरका विरोध नहीं किया था । उसने एक मित्रके समान उसका स्वागत किया था । इस प्रकार भारतवर्ष में पहिले पहिल सिकन्दरके सम्मानित होने में तक्षशिलाधीश और पुरु - ( पोरस ) एवं अन्य राजपूतों का पारस्परिक मनोमालिन्य ही मूल कारण था । पुरु और अन्य राजा लोग तक्षशिलापर कईवार चढ़ाई करते रहे थे । सिकन्दर तक्षशिलाधीशके इस स्वागतपर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने उसे तक्षशिलाका राज्य पुनः सौंप दिया । किन्तु पुरु (पोरस) ने, जो सिंधु और झेलम नदीके बीचवाले, देशपर I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ·
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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