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________________ नन्द वंश । [१८३ रामा बन बैठा था। प्राचीन जैन कानूनकी दृष्टिसे यद्यपि महानन्दका शूदा स्त्रोसे विवाह करना ठीक सिद्ध होता है। किंतु इस विवाह संबंधसे उत्पन्न हुआ पुत्र महापद्म केवल भरण-पोषणके योग्य सहायता पाने का अधिकारी ठहरता है । वह राज्यसिंहासनपर भारूड़ होने के योग्य अधिकार नहीं रखता था ! राना उपश्रेणिकके संबंध भी यही बात घटित हुई प्रतीत होती है । वह एक भोल कन्याको इस शतपर विवाह लाये थे कि उसके पुत्रको राजा बनायेंगे । किंतु शास्त्र और नियमानुसार श्रेणिक ही राज्य पानेके अधिकारी थे। हठात् उपश्रेणिक महारानने अपना वचन निभानेके लिये, श्रेणिकको देशसे निर्वासित कर दिया था; यह सब कुछ लिखा जाचुका है। महापद्मको इस नियमका उल्लंघन करना पड़ा था और उसने वास्तविक उत्तराधिकारीकी जीवनलीला असमयमें ही समाप्त करके स्वयं नन्दराज्यकी बागडोर अपने हाथमें ली थी। मालूम होता है कि इस घटनासे जैन रुष्ट हुये होंगे और महापनको घृणाकी दृष्टिसे देखने लगे होंगे। यही कारण है कि महापद्म द्वारा नैनोंके सताये जाने का उल्लेख मिलता है। उड़िया भाषाके एक ग्रन्थमे (१४वी श० ) मगधके नन्दरानाको वेद धर्मानुयायी लिखा है। उपर जैनोंके हरिषेण कृत कयाकोषमें (८वी श०) भी एक नन्दराजाको ब्राह्मण धर्म में दीक्षित करने की कथा मिलती है। वहां महापद्म नामक एक नैन मुनिने 1-अविओ मा० १ पृ. ८७ व माप्रारा० भा० २ पृ. ४५ अखि पृ. ४०-४। २- ० । ३-भगवतीसूत्र-ऑप. मा० १ पृ. ५८... ४-अविमोसो० भा० ३ ० ४८१ । ५-स पसाकोषके भनुशार " आराधना व्याकोष' भा• ३ पृ. ७०-८१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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