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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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नव-नन्द |
नन्द-वंश । ( ई० पूर्व ४५९ - ३२६ ) शिशुनागवंशके अंतिम दो राजाओं-नन्दवर्द्धन और महानन्दिका उल्लेख पहिले किया जाचुका है; किन्तु इनके नामके साथ 'नन्द' शब्द होनेके कारण, यह नन्दवंशके राजा अनुमान किये जाते हैं। नंदवंशमें कुल नौ राजा अनुमान किये जाते हैं; किन्तु मि० जायसवाल 'नव-नन्द' का अर्थ 'नवीन नन्द' करते हैं । इस प्रकार नन्दवर्द्धन और महानंदि तथा महादेवनन्द व नन्द चतुर्थ प्राचीन नंदराजा ठहरते हैं । क्षेमेन्द्रके
पूर्वनन्दाः ' उल्लेख से भी इनका प्राचीन नन्द होना सिद्ध है । नवीन नंद राजाओं में कुल दोका पता चलता है । इस प्रकार कुल छै राजा नंदवंशमै हुये प्रगट होते हैं । कवि चन्दबरदाई (१२ वीं श० ई०) ने 'नव' का अर्थ नौ किया था; किन्तु वह भ्रम मात्र है । हिन्दुपुराणों के अनुसार नंदवंशने १०० वर्ष राज्य किया था; किन्तु जैनग्रन्थों में उनका राज्यकाल १५५ वर्ष लिखा मिलता है।
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१ - जबिओसो, भा० १ पृ ८७ - सिकन्दर महानको वृषल नन्द सिंहासन पर मिला था ( ३२६ ई० पू० ) और चन्द्रगुप्तने दिसम्बर ई० ० पू० ३२६ में अंतिम नन्दको परास्त किया था । इस कारण मि० जायसवाल एक महीने में आठ राजाओंका होना उचित नहीं समझते । २-अहि पृ० ४५ । ३ - जबिओसो, भा० भा० २ पृ० ४३ । ४-हरि० भूमिका पृ०
९६ - ( पालकरज्जं सर्हि इगिसय पणत्रण्ण विजयवसंभवा । ) जैन ग्रंथों में
इस वंशका नाम ' विजयवंश' लिखा है 1
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१ पृ० ८९... व भाप्रारा० १२ व त्रिलोकप्रज्ञप्ति गाथा
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