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भगवान महावीरका निर्वाणकाल ।
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माना जाता था। सामान्यतः उस समयके धर्मका यह विशालरूप है।
इस प्रकार उस समयके भारतकी परिस्थिति थी और वह आनसे कहीं ज्यादा सुघर और अच्छी थी। प्रत्येक प्राणी स्वाधीन और पराक्रमी था। रूढ़ियों की गुलामी, धार्मिकताका अंधविश्वास अथवा रुपये पैमेकी चाकरी उस समय लोगोंमें छू नहीं गई थी। सब प्रसन्न और आनन्दमई जीवन विताते थे। इनका उल्लेख ही उम समय नहीं मिलता है । हां, एक बात का बहुत उल्लेख मिलता है। वह यह कि वैराग्य होनेपर मुमुक्षु पुरुषोंको न राज्यका लालच, न स्त्री पुत्रों का मोह और न धन-संपदाका लोभ साधु होनेसे रोक सक्ता था। यह तो एक नियम था कि अंतिम जीवन में प्रायः सब ही विचारवान गृहस्थ माधु होकर आत्मज्ञान और ननकल्याणके कार्य करते थे; किंतु ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जिनमें वैराग्यको पाकर व्यक्ति भरी जवानी में मुनि होगए थे ।*
भगवान महावीरकानिर्वाणकाल।
भगवान महावीरजीके निर्वाणकी दिव्य घटनाको मानसे करीब निकाली ढाईहनार वर्ष पहले अर्थात ईस्वी सन् १२७
असम्बद्धता। वर्ष पहले घटित हुमा माना जाता है । जेनोंमें मामकल निर्वाणाब्द इसी गणनाके अनुसार प्रचलित है। किन्तु उसकी गणनामे अन्तर है; जिसकी भोर मि० काशीप्रसाद जायसवाल, प्रो. कोबी और पं० बिहारीलालनी नोंका ध्यान . * जैप्र. पृ. २३।। १-जविभोसो, मा० १ १०९९ । २-वीर १। ३-वृजेशपृ.८।
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