SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्कालीन सभ्यता और परिस्थिति । उस समय के भारतकी राजनैतिक सामाजिक और धार्मिक परिस्थितिका पर्ययलोचन कर लिया जावे। बस भारतकी तब जो दशा थी वह स्पष्ट हो जायगी और उसके साथ जैनधर्म और जैन समाजका जो स्वरूप उस समय था, वह भी प्रकट हो जायगा । अतः राजनैतिक विषय में तो उपरोक्त वर्णनसे पर्याप्त प्रकाश पड़ चुका है । उस समयका भारत राजनैतिक रूपमें आजसे कहीं अधिक स्वाधीन और बलवान था । उसकी राष्ट्रीय दशा विशेष उन्नतशील और समृद्धिशाली थी । उस समय यहां एक समूचा राज्य नहीं था । भारत छोटे२ राज्यों में विभक्त था; जिनकी संख्या सोलह थी । इनमें कोई तो परम्परीण सत्ताधिकारी राजाओंके अधिकार में थे और किन्हींका शासन प्रजातंत्र प्रणालीके ढंगपर होता था । प्रजातंत्र प्रणाली ऐसी उत्कृष्ट दशा में थी कि आजके उन्नत - शील प्रजातंत्र राज्योंके लिये वह एक अच्छा खासा आदर्श है । इस प्रकार उस समयकी राजनैतिक स्थिति थी । श्रेणिक महाराज महामंडलेश्वर अर्थात एक हजार राजाओंके स्वामी थे' 1 [ १३९ उस समयकी सामा जिस देशकी राजनैतिक स्थिति सुचारु और समृद्धिशाली हो, उसका समाज अवश्य ही उन्नतशील जिक दशा । व्यवस्था में होता है । ऐहिक सुख सम्पन्न दशा में व्यक्ति स्वातंत्र्य आत्महितकी बातोंकी ओर लोगोंका ध्यान स्वतः जाता है । उस समयका भारतीय समाज ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र वर्णोंमें विभक्त था । चाण्डाल आदि भी थे । भगवान १-० पृ० ३३९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy