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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास। म्पाके शालमहाशाल, हस्तिशीर्षके मदिनशत्रु; ऋषभपुरके धनबाह; चीरपुरके वीर कृष्णमित्र; विजयपुरके राजा वासवदत्त; कनकपुरके प्रियचंद्र; साकेतपुरके मित्रनंदि; और महापुरके बल राना भगवान महावीरके मित्र थे। पोदनपुरके प्रसन्नचंद्र भगवान महावीरके समोशरणमें दीक्षा ले राजर्षि हुये थे', मोरियगण राज्यके प्रख्यात् पुरुष जैनधर्मके पोषक थे । भगवानके दो गणधर इसी देशके थे । इनके अतिरिक्त अनेक विदेशी राजा भी भगवानके भक्त थे जिनका उल्लेख विद्याधररूपमें हुआ है। जिस समय भगवान महावीरजीका समोशरण सम्मेदशिखिरपर बिराजमान थ ; उस समय भूतिलकनगरका विद्याधर राना हिरण्यवर्मा भगवानकी शरणमें आया था। इसके पिता हरिबलने विपुलमति नामक चारण मुनिसे दिगम्बरीय दीक्षा ग्रहण की थी। इसी प्रकार अन्य कितने ही विदेशी लोगोंने जैनधर्ममे विश्वास रखकर आत्मकल्याण किया था । राजाओंके अतिरिक्त बहुतसे श्रावक धनसम्पदामें भरपुर अवती गृहस्थ श्रावक प्रख्यात सेठ थे। इनमें उज्जैनीके धन्यऔर श्राविकायें वीर कुमार सेठका उल्लेख पहिले किया जाचुका प्रभूके अनन्य है। उनके विशिष्टगुणोंको देखकर श्रेणिक भक्त थे। महाराजने उन्हें अपना जमाई बनाया था। इसी तरह राजगृहके सेठ शालिभद्र थे जिन्होंने विदेशोंसे व्यापार करके खूब धन संचय किया था और खूब धर्मप्रभावना की थी। उस समय विदेहदेश अपने व्यापारके लिये प्रसिद्ध था। वहांके १-एइने० पृ० ६५० । २-गुमापरि० पृ० ४० । ३-उपु० पृ. २७३ । ४-उपु. पृ. २७२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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