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________________ श्री वीर-संघ और अन्य राजा। [१३३ पंडिता थीं। बौद्धशास्त्रोंमें भी कई जैन साध्वीयोंका उल्लेख मिलता है। उनके वर्णनसे पता चलता है कि उस समय यह जैन साध्वीयां देशमें चारों ओर विहार करके धर्मप्रचार करती थी और लोगोंमें ज्ञानका प्रकाश फैलाती थीं। राजगृहके राजकोठारीकी पुत्री भद्र। कुन्दलकेसाका जीवन इस व्याख्यानका साक्षी है । वह अपने गृहस्थ जीवनसे निराश होकर मार्यिका होगई थी। उसने केशलोंच किया और एक सादड़ी ग्रहण करली थी फिर वह चहुंओर विहार करने लगी थी। बड़े लोग उसके उपदेशसे प्रभावित होते थे और वह बड़े२ धर्माचार्योसे वाद भी करती थी। श्रावस्तीमें उसने प्रसिद्ध बौद्धाचार्य सारीपुत्तसे वाद किया था । अतः उस समय भारतीय महिलासमानकी महत्वशाली दशाका सहन ही अनुमान लगाया जासक्ता है । भारतीय महिला ओंको यह गौरव भगवान महावीरके दिव्यसंदेशसे प्राप्त हुआ था; निसको सुनकर लोग स्त्रियोंको हेय दृष्टिसे देखना भूल गये थे । भगवानने व्यक्तिविशेष अथवा जातिविशेषको आदरका पात्र नहीं बताया था। उन्होंने गुणवानको ही पूजनीय ठहराया था। फिर चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष ! जैनधर्म में प्रत्येक मात्माको एक समान कहा गया है। महावीरजीका यह व्यक्ति स्वातंत्र्यवाला संदेश उस समय खुब ही जनकल्याणका कारण हुमा था। वीरसंघमें जितना दर्ना एक मुनिका माना जाता था, मार्यिकाका भी उपचासे उतना ही था। वह भी 'महाविती' कही गई है। वैसे मार्यिकायें पांचवें गुणस्थानवर्ती ही होती हैं। १-भमबु० पृ. २५९-२६१ । २-अष्टपाहु पृ. ७३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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