SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६] संक्षिप्त जैन इतिहास । नने अपनी ४२ वर्षकी अवस्थासे यह धर्म प्रचार कार्यप्रारम्भ करके ७२ वर्षकी अवस्था तक बड़ी सफलतासे किया था । जिप्त समय भगवान ७२ वर्षके हुये, उस समय उन्हें निर्वाण लाभ हुआ था। जैन शास्त्र कहते हैं कि भगवान विहार करते हुये पावापुर नगरमें पहुंचे और वहां के 'मनोहर' नामक वनमें सरोवरके मध्य महामणियोंकी शिलापर विराजमान हुये थे । ___ पाबानगर धन सम्पदामें भरपुर मल्लराजाओंकी राजधानी थी। उस समय यहांके राजा हस्तिपाल थे और वह भगवान महावीरके शुभागमनकी वाट जोह रहे थे । अपने नगरमें त्रैलोक्य पूज्य प्रभुको पाकर वह बड़े प्रसन्न हुये और उनने खूब उत्सव मनाया। कहते हैं कि भगवानका यहां ही अन्तिम उपदेश हुआ था। अन्ततः "विहार छोड़कर अर्थात् योग निरोधकर निर्जराको बढ़ाते हुये वे दो दिन तक वहां विराजमान रहे और फिर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रिके अंतिम समयमें स्वाति नक्षत्रमें तीसरे शुक्लध्यानमें तत्पर हुये। तदनन्तर तीनों योगोंको निरोधकर समुच्छिन्न क्रिया नामके चौथे शुक्लध्यानका आश्रय उन्होंने लिया और चारों अघातिया कर्मोको नाश कर शरीर रहित केवल गुणरूप होकर सबके द्वारा वाञ्छनीय ऐसा मोक्षपद प्राप्त किया।" इस प्रकार मोक्षपद पाकर वे अनन्त सुखका उपभोग उसी क्षणसे करने लगे। इस समय भी इन्द्रों और देवोंने मानन्द उत्सव मनाया था। सारे संसारमें अलौकिक आनन्द छा गया था। अंधेरी रात थी, तो भी एक अपूर्व प्रकाश चहुं ओर फैल गया था। १-उपु० पृ० ०४४ व सुनि० १०-८८..२-उपु० पृ० ७४४-७४५, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy