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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास । पांचाल, भद्रकार, पाटच्चर, मौक, मत्स्य, कनीय, सौरसेन एवं वृकार्थक) समुद्रतटके (कलिंग, कुरुनांगल, कैकेय, आत्रेय, कांबोज, वाल्हीक, यवनश्रुति, सिंधु, गांधार, सौवीर, सुरभीरु, दशेरुक, वाडवान, भारद्वाज और क्वाथतोय) और उत्तर दिशाके (तार्ण, कार्ण, प्रच्छाल आदि) देशोंमें विहारकर उन्हें धर्मकी ओर ऋजु किया था।" श्वेताम्बराम्नायके 'कल्पसूत्र' ग्रंथमें भगवान के विहारका उल्लेख श्वेताम्बर शास्त्रों में चातुमासोंके रूपमें किया है । वहां लिखा है चातुर्मास वर्णन। कि चार चतुर्माप्त तो भगवानने वैशाली और वणियग्राममें विताए थे; चौदह राजगृह और नालन्दाके निकटवर्तमें, छै मिथिलामें; दो भद्रिकामें; एक अलभीकमें; एक पाण्डभूमिमें; एक श्रावस्तीमें और अंतिम पावापुरमें पूर्ण किया था। किन्तु दिगम्बरानायके शास्त्र इस कथनसे सहमत नहीं हैं। उनका कथन है कि एक सर्वज्ञ तीर्थकरके लिये 'चतुर्मास' नियमको पालन करना मावश्यक नहीं है । उधर श्वेताम्बर शास्त्रों में परस्पर इस वर्णनमें मतभेद है। उपरोक्त वर्णनसे शायद यह ख्याल हो कि भगवानका विहार भगवान महावीरजीका केवल भारतवर्षमें हुआ था; किन्तु यह सुखदविहार और विदे. मानना ठीक नहीं होगा। जैन शास्त्र शोंमें धर्मप्रचार । स्पष्ट कहते हैं कि भगवानका विहार और धर्मप्रचार समस्त मार्यखंडमें हुआ था। भरतक्षेत्रके अन्तर्गत मार्यखंडका जो विस्तृत क्षेत्रफल जैन शास्त्रोंमें बतलाया गया है, - उसको देखते हुये वर्तमानका उपलब्ध जगत उसीके अन्तर्गत सिद्ध १-हरि० पृ० १८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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