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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [८६ सार्थकता अथवा औचित्यकी ओर ध्यान ही नहीं देते थे। भगवान महावीरका धर्मप्रचार ठीक वैज्ञानिक ढंगपर होता था। उनके निकट निज्ञासुकी शंकाओं का अन्त एकदम हो जाता था। इसका कारण यही था कि वह त्रिकाल और त्रिलोकदर्शी सर्वज्ञ थे। उन्होंने आत्मा और लोकके मस्तित्व एवं कर्मवादको पूर्णतः स्पष्ट प्रतिपादित करके सैद्धांतिक निज्ञासुओं की पूरी मनः संतुष्टि कर दी थी। उनने वनस्पति, पृथ्वी, जल, अग्नि वायु आदि स्थावर पदार्थो में भी जीव प्रमाणित किया था और कर्मवर्गणाओंका अस्तित्व और उनका सुक्ष्मरूप प्रकट करके अणुवादका प्राचीन रूप स्पष्ट कर दिया था। इसके विपरीत म० बुद्धने यह भी नहीं बतलाया था कि आत्मा है या नहीं। उनने भात्मा, लोक, कर्मफल मादि सैद्धांतिक बातोंको अधुरी छोड़ दिया था। इस अपेक्षा विहजन म० बुद्धके धर्मको प्रारम्भमें एक सैद्धांतिक मत न मानकर सामाजिक क्रांति ही मानते हैं। दोनों ही धर्मनेताओंने यद्यपि अहिंसातत्त्वको स्वीकार किया है। परन्तु जो विशेषता इस तत्त्वको भगवान महावीरके निकट प्राप्त हुई, वह विशेषरूप उसे म बुद्ध के हाथोंसे नसीब नहीं हुमा । ___म. बुद्धने अहिंसा तत्वको मानते हुये भी मृत पशुओंक मांसको ग्रहण करना विधेय रक्खा था और इपी शिथिलताका आम यह परिणाम है कि प्रायः सर्व ही बौद्ध धर्मानुयायी मांसमक्षक मिळते है। किन्तु जैनधर्मके विशिष्ट महिंसा तत्त्वसे प्रभावित १-ममबु० पृ. ११८-१२० । २-कीय, बिस्ट फिलासफी पृ. ६२ । ३-लामाइ. पृ० १३१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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