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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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उपलक्ष में ही उन स्थानोंके नाम भगवान महावीरजीकी अपेक्षा उल्लिखित हुये जिनका सम्पर्क महावीरजी से था । कहते हैं मानभूमि जिला, मान्यभूमि रूपमें भगवान के अपरनाम "मान्य श्रमण " की अपेक्षा कहलाया था | सिंघभूम जिलाका शुद्ध नाम 'सिंहभूमि बताया गया है और कहा गया है कि वीर प्रभुकी सिंहवृत्ति थी और उनका चिन्ह 'सिंह' था; इसलिये यह जिला उन्हीं की अपेक्षा इस नाम से प्रख्यात हुआ था । इनके अतिरिक्त विजयभूमि, वर्द्धमान ( वर्देवान ), वीरभूमि आदि स्थान भी भगवान महावीरजी के पवित्र नाम और उनके सम्बन्धको प्रगट करनेवाले हैं । सचमुच बंगाल व बिहार में उपसमय जैनधर्मकी गति विशेष थी और जनता भगवान महावीरको पाकर फूले अंग नहीं समाई थी ।
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म० गौतम बुद्ध बौद्धधर्म के प्रणेता थे और वह भगवान म० बुद्ध एक समय महावीरके समकालीन थे । जैन शास्त्रों
जैन मुनि थे 1 उनको भगवान पार्श्वनाथजीके तीर्थके मुनि पिहिताश्रवका शिष्य बतलाया है। लिखा है कि दिगम्बर जैन मुनिपदसे भ्रष्ट होकर रक्ताम्बर पहिनकर बुद्धने क्षणिकवादका प्रचार किया और मृत मांस ग्रहण करनेमें कुछ संकोच नहीं किया था । जैन शास्त्र के इस कथन की पुष्टि स्वयं बौद्ध ग्रन्थोंसे होती है । उनमें एक स्थानपर स्वयं गौतम बुद्ध इम बात को स्वीकार करते हैं १ - इहिका० भा० ४ १०४५। २- पूर्व प्रमाण । ३-धर भा० ३ १० ३७० व बषिओ जैस्मा० पृ० १०९ । ४ भमबु० पृ० ४८-४९. म० बुद्धको अनात्मवाद सहसा मान्य नहीं था । उनने स्पष्टतः आत्माके अस्तित्व से इन्कार नहीं किया था । यह उनकी जैन दशाका प्रभाव
कहा जासकता है ।
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