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परिच्छेद ।..
चतुर्थ परिच्छेद । अवशेष तीर्थंकर और अन्य महापुरुष ।
पूर्व परिच्छेद में हम कर्मभूमि की प्रवृत्तिका वर्णन देख आए हैं । उस समय जीवनकी सुगमता और सादेपनका दिग्दर्शन भी कर आए हैं । अब यहां उसके आगेका वर्णन करनेके लिये अवशेष तीर्थङ्करोंके समयका विवरण लिख रहे हैं, जिससे हमको तत्कालीन अवस्थाका ज्ञान प्राप्त हो जाय ।
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भगवान ऋषभदेव से पचास करोड़ सागरके बाद दूसरे तीर्थकर अजितनाथ हुए थे । इनके समय तक भगवान ऋषभनाथके बतलाए हुए मार्गपर प्रजा चल रही थी । यह इक्ष्वाकु वंश और काश्यप गोत्रके नृपति जितशत्रुके यहां जन्मे थे। इनकी माताका नाम विजयसेना था। यह ज्येष्ठ वदी अमावस के दिन अपनी माताके गर्भमें आकर माघ सुदी दशमीको रोहिणी नक्षत्र में अयोध्या में जन्मे थे । युवा होनेपर इनका विवाह हुआ था। भोग भोगते हुए कदाचित् आपको आकाशमें उल्कापात देखने से वैराग्य होगया । तदनुसार आपने दिगम्बर दीक्षा माघ सुदी नवमीको धारण की। उस समय आपको मन:पर्यय ज्ञान उत्पन्न हुआ था | छह मासके उपवासके बाद आपने ब्रह्मभूत राजाके घर आहार लिया था । पश्चात् १२ वर्ष तप तपकर आप पौष सुदी ११ के दिन केवलज्ञानी ( सर्वज्ञ ) हुए थे । सर्वज्ञ होनेपर आपने समवशरणके साथ विहारकर धर्मोपदेश दिया । और चैत्र सुदी पञ्चमीके दिन सम्मेद शिखर से मोक्षलाभ किया था । प्रत्येक तीर्थकर की भांति
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