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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग ।
आहार देनेकी विधि उस समय कोई नही जानता था । भगवानका अभिप्राय न समझ कोई कुछ और कोई कुछ भगवानके सन्मुख रखता था, परन्तु भगवान उनकी ओर देखते तक न थे । अन्तमें जब करीब सात माहसे कुछ दिन ऊपर होगये तब वैशाख सुदी ३ को कुरुजांगल देशके राजा सोमप्रभके छोटे भाई युवराज श्रेयांसने जातिस्मरण - पूर्वभवका ज्ञान होजानेसे विधिपूर्वक इक्षुरसका आहार दिया। इससे उस राजाके यहां इन्द्रों व देवोंन पंचाश्चर्य किये थे। एक दिन भगवान विहार करते२ पुरिमताल नामक नगरके पासवाले शकट नामक वनमें जा पहुंचे और वहांपर ध्यान धारण किया। भगवानके बड़े भारी तपश्चरणसे चार घातिया कर्मों का नाश हुआ और भगवानको केवलज्ञान, सर्वज्ञत्व प्राप्त हुआ। जिस दिन भगवान सर्वज्ञ हुए वह दिन फाल्गुन वदी एकादशीका दिन था | भगवानके केवलज्ञानका समाचार प्राकृतिक रीतिसे स्वयं ही स्वर्गमें पहुंच गया। इतने बडे महागाके सर्वज्ञ होनेपर जगतमें प्राकृतिक रीतिसे विलक्षण परिवर्तन होजाना आश्चर्यजनक नहीं कहला सकता । अतएव भगवानके सर्वज्ञ होते ही स्वर्गों में बाजे म्वयमेव बजने लगे, घण्टोंकी ध्वनि हुई, पृथ्वीपर चारोंओर चार २ कोशतक सुकाल होगया, छहों ऋतुओंके फलफूल एक ही समय में उत्पन्न होगये आदि कई आश्चर्यजनक घटनाएं हुई। स्वर्ग में भगवानके सर्वज्ञ होनेके चिह्न प्रगट होते ही उसी समय इन्द्रोंने अपने आमनसे उठकर भगवानको नमस्कार किया और देवोंकी सेनाके साथ बड़ी सजधजसे भगवानकी पूजा करनेको आए ।*
*जै० इति० भाग १ पृष्ठ ४५-४६ ।
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