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तृतीय परिच्छेद ।
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[ ६५ दिया । प्रजाके कल्याणार्थ उपायोंके साथ साथ असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प, इन षट्कर्मोंका भी उपदेश दिया गौ भैंस आदि पशुओं का संग्रह कर उनके पालने की विधि बतलाई । सिंह आदि दुष्ट जीवों से बचने का उपाय बतलाया | भगवान के सौ पुत्रोंने और प्रजाने उस समय अनेक कला शास्त्र सीखें और सैकडों को शिल्पो बनाया। शिल्पकला में प्रवीण कारीगरोंने उस समय भरतक्षेत्रकी पृथ्वीपर अनेक पुर, गांव, घर, खेट, खर्वट बनाए । उस समय भगवानने क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्णोकी स्थापना की। जो वणिकवृत्ति व्यापार करनेवाले थे, उन्हें वैश्य किया और जो शिल्पविद्या में चतुर थे- मकान आदि बनाना जानते थे, उनको वर्ण शुद्ध ठहराया । षट्कर्मोंका उपदेश देकर भगवान ने उस समय प्रजाको सुखी किया, उनकी बुद्धिमें नवीन युगका संचार किया । इसलिए उन्हें लोग कृतयुग कहने लगे ।"
भगवान ऋषभनाथके कहने से इन्द्रने जिन मंदिरों, देश, उपप्रदेश, नगर आदिकी रचना की थी। भगवान के समय में ही पूर्वोल्लिखित ५२ देशोंकी रचना की गई थी। इन देशों में कहीं जलकी सिंचाई से
1 इन्हीं कारणवश शायद हिदुओंने आपकी अपने अवतारोंमें गणना की है । आपने लिपि बिद्याका भी सबसे पहिले प्रचार किया था, जैसे कि हिन्दी विश्वकोषके भाग १ में भी कहा है ।
* श्रीहरिवंशपुराण सर्ग ९ श्लोक ३३-४० हिन्दुओंकी मनुस्मृतिमें आपके विषय में लिखा है:
' दर्शयन् वर्त्मवीराणां सुरासुरनमस्कृतः । नीतित्रयस्य कर्ता यो युगादौ प्रथमो निनः ॥ '
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