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________________ ५. संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग। पलटनके छठवें भागमें जैसा कुछ समय रहता है वही उन्नतिके पहिले भागमें होता है और पहिले भागमें जो होता है वह उन्नतिके छठवें भागमें होता है। इस प्रकार आर्यखण्डमें समयका परिवर्तन होता है। वर्तमान समय अवनतिकी पलटनका पाँचवाँ हिस्सा है-पंचमकाल है । इसके पहिले चार काल और इस पलटनके पूरे हो चुके हैं ।"* ___ उपरोक्त प्रकार समयचक्रसे हमें ज्ञात होता है कि तीसरे काल अर्थात् भोगभूमिके अन्तिम समयसे प्रकृत इतिहास प्रारम्भ होता है। भोगभूमि उस समयको कहते हैं जिसमें विना किसी व्यापार आदि क्रियाके भोगोपभोगकी सामग्री मिलती हो। इसीके अन्तिम समयमें १४ कुलकर व मनु जन्म धारण करते हैं। इनके द्वारा जीवनकी व्यवहारिक व्यवस्थाका नींवारूपण हो जाता है। इनका विवरण इस प्रकार है कर्मभूमिके वह मनुष्य जो म्वभावसे ही मंदकषाई सम्यक्दृष्टि एवं उत्तम आदि पात्र में दान देनेवाले होते हैं, भोगभूमिमें जन्म धारण कर भोगोपभोगका सुख उठाते हैं । यह कुलकर गंगा एवं सिंधु दोनों नदियोंके मध्यभूमिमें उत्पन्न होते हैं । और इनके जन्म समय कल्पवृक्षोंकी प्रभा मंद होजाती है। कुलकरों में सबसे पहिले कुलकर प्रतिश्रुति थे। इनके कालमें मनुष्योंने आषाढ़ सुदी पूर्णमासीके दिन आकाशमें चंद्र और सूर्य देखे । यद्यपि चंद्र सूर्य अनादिकालसे सदैव उदय अस्तको प्राप्त होते रहते थे और विद्यमान थे, परन्तु उस दिन तक ज्योतिरंग जातिके कल्पवृक्षोंके *सुरजमल जैन कृत "जैन इतिहास" भाग १ पृष्ठ १६-२२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035242
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1943
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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