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- द्वितीय परिच्छेद ।
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• पुरुषको जंभाई आती है। शरीरकी ऊंचाई व मनुष्यकी आयु क्रमशः घट जाती है।
(२) अवनतिकी पलटनके दूसरे हिस्सेका नाम सुःषमा है। यह तीन कोडाकोड़ी सागरका होता है। इसमें पहिले हिस्सेसे शरीरकी ऊंचाई आदि घट जाती है। इस कालके मनुष्योंकी ऊंचाई सोलह हजार हाथ और आयु दो पल्यकी होती है। यह भी क्रमशः घटती जाती है। इस कालके भी मनुप्य बहुत सुन्दर होते हैं और भोजन आदि भोगोपभोगके पदार्थ कल्पवृक्षोसे पाते हैं। इन दोनों (पहिले व दूसर) हिम्सोंमें कोई राजा महाराजा नहीं होता। सूर्य और चंद्रमाका प्रकाश भी कल्पवृक्षोंके कारण प्रगट नहीं रहता। सिंहादि क्रूर जंतु. ओंका म्वभाव शांत रहता है।
(३) तीसरे हिस्सेका नाम दुःषमा सुःषमा है । यह दो कोड़ाकोड़ी सागरका होता है । इस समय मनुष्योंकी आयु एक पल्यकी
और ऊंचाई एक कोशकी होती है। इस समय मनुष्य एक दिन बाद भोजन करते हैं और वह भोजन आंबलेके बराबर होता है । अवनतिकी पलटन होनेके कारण सब बातोंकी घटती होती जाती है। यद्यपि इतिहासका प्रारम्भ उन्नति और अवनतिकी पलटनके पहिले हिम्के प्रारम्भस ही होता है, परन्तु प्रकृत इतिहासका प्रारम्भ तीसरे हिस्सेके आखिरी भागस ही होता है। क्योंकि इतने समय तकके मनुष्य विना परिश्रमके कल्पवृक्षों द्वारा प्राप्त पदार्थोंका ही भोग करते रहमे हैं और कोई धर्म, कर्म भी नहीं रहते जिससे कि मनुष्योंकी
जोवन घटनाओं में परिवर्तन हो, अतः प्रकृत इतिहास तीसरे भागके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com