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= दूसरा संस्करण।
“संक्षिप्त जैन इतिहास" के प्रथम भागका यह दूसरा संस्करण पाठकोंको भेंट करते हुये हमें हर्ष है। इस अन्तरालमें इस 'इतिहास' के पाँच भाग वा खंड प्रकाशित हो चुके हैं; किन्तु अभी मध्यकालीन जैन इतिहास भी पूरा नहीं होपाया है। उस पर मजा यह है कि यह सब भाग संक्षेपमें लिखे गये हैं। अतः विज्ञ पाठक अनुमान कर लीजिथे कि विस्तृत जैन इतिहासकी रचना कितनी परिश्रमसाध्य और विशद है। अकेला एक व्यक्ति उसकी पूर्ति नहीं कर सकता। व्यक्तिगत प्रयासका परिणाम यह “संक्षिप्त जैन इतिहास" है, जिसके ५ भाग प्रगट होचुके हैं और कई अभी प्रगट होना शेष हैं। इस भागमें प्राङ्ग ऐतिहासिककालीन जैन महापुरुषों और जैनधर्मका वर्णन है। यह वर्तमान इतिहासको कालपरिधिसे पूर्वका विषय है; परन्तु वह समय भी शायद आवे जब हमारे भारतीय विद्वानोंके गवेषणात्मक अन्वेषणोंसे भारतीय इतिहासकी रूपरेखा बदल जावेगी और उसका आदि काल भूतकी गहनतामें दूर-दूर चमकता नज़र आयगा! तब जैन मान्यतानुसार लिखित यह इतिहास अपने महत्वको प्रगट कर सकेगा।
मित्रवर कापड़ियाजी यह दूसरा संस्करण कागजके इस अकारके समयमें निकाल रहे , इसलिए उन्हें वधाई है। इस संस्करणको हमने पुनः तो नहीं लिखा है, जैसी हमारी इच्छा थी; परन्तु इसका काफी संशोधन कर दिया है। अतः पाठक इसे उपयोगी पायेंगे। इत्यलम्
अलीगंज, । ता० १-१०-४३.
विनीतकामताप्रसाद जैन।
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