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प्रस्तावना
[ १७ भाषाओंके इतिहाससे भी होती है, क्योंकि उससे जाना जाता है कि पहिलेके आर्य लोग और मुख्यतः उनमें वह क्षत्री जो काशी, कौशल, are और विदेहके निवासी थे, एक प्रकारकी प्राकृत भाषा बोलते थे; जिसके कारण कुरु पाञ्चालके आर्योंने उनकी आर्य भाषाके कल्पित दूषित उच्चारणके कारण उपेक्षा की थी । और जब कि यह पूर्णतया मानी हुई बात है कि जैनियोंके प्राचीन ग्रन्थ केवल प्राकृतमें ही लिखे जाते थे, तब प्राकृतिक दृष्टिसे भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि काशी, कौशल, विदेह और मगधके निवासी पहिलेके आर्य जैन थे । इस प्रकार जैनी और उनका धर्म आर्य प्रमाणित होते हैं। इसलिए जैनी भारतवर्षके मूल निवासी आर्य हैं। प्रो० ए० चक्रवर्ती एम० ए० इस ओर विशेष अनुसंधान कर रहे हैं । उन्हींके एक लेखसे यहां यह वर्णन किया गया है ।
क्या पूर्वी आर्य म्लेच्छ और प्राचीन आर्य्योमेंसे निकले थे ?
हिन्दू शास्त्रोंमें पूर्वी आर्यों अर्थात् जैनियोंको भ्रष्ट म्लेच्छ कहा है तो क्या वह वास्तवमें म्लेच्छ थे ? परन्तु इस प्रश्नकी असार्थकता पूर्वोक्त कथनसे ही प्रत्यक्ष है और यह साफ प्रगट है कि वेद विपरीत विचारोंका प्रचार करनेसे उनका ऐसे शब्दद्वारा उल्लेख किया गया है. यद्यपि वास्तव में वह आर्य थे । इसके अतिरिक्त उनमें पूर्वी आयका म्लेच्छ कहना स्वयं हिंदुओंकी 'स्मृति' के निम्न लोकसे बाधित है
चार्तुवर्णव्यवस्थानं यस्मिन्देशे न विद्यते । म्लेच्छदेश स विज्ञेयः आर्यावर्तस्ततः परम् ॥
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