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.] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग। 'अन्' का उल्लेख "ऋग्वेदसंहिता" (अ० २ व०१०) में हुआ है।' कालीदासकृत हनूमान नाटक' में (अ. १ श्लोक ३ ) लिखा है कि 'अन्' जैनियों के उपासनीय देव हैं। 'ऋवरसंहिता' (१०१३६-२) में आगे 'मुनयः वातवमना: ' रूपमें दिगम्बर जैन मुनियों का उल्लेख मिलता है । डॉ० अल्वेट वेबरने यह वेद वाक्य जैन मुनियों का द्योतक बताया है। ऋषम, सुपै.श्व, नमि' आदि नाम भी ऋग्वेद और यजुर्वेदमें मिलते हैं। यह नाम जैन तीर्थंकरोंके हैं। प्रत्युत चौवीस तीर्थरोंका उल्लेख भी उन वेदों में मिलता है। ऋग्वेदमें ऐसे श्रमणोंका भी रल्लेख है, जो यज्ञों में होनेवाली हिंसाका विरोध करते थे। जैनधर्म हिंसक यज्ञोंका विरोधी रहा है। अत: इन उल्लेखोंसे वैदिक कालके समय जैनधर्मका अस्तित्व सिद्ध होता है।
वेदोंके उपरोक्त उल्लेखोंके विषयमें कहा जाता है कि निरुक्त और भाष्यसे उनका जैन सम्बन्ध प्रगट नहीं है, किन्तु यह याद रखनेकी बात है कि उपलब्ध वेद भाष्य आदि प्रायः अर्वाचीन हैं। पेदोंका यथार्थ अर्थ और ऐतिहासिक परिपाटी बहुत पहले ही लुस होचुकी थी। भ, पार्श्वनाथके समकालीन (ई. पू० ७वीं शताब्दी) वैदिक विद्वान कौत्स्य वेदोंकी असम्बद्धता देखकर भौंचके-से रह गये थे और वेदोंको अनर्थक लिखा था। (अनर्थ का हि मंत्राः । यास्क,
१-मोशमूलद्वारा सम्पादित (लंन १८५४) भा० २ पृष्ठ ५७९. २-इंडियन एटीकेरी, भा० ३० (१९०१) व जिनेन्द्रमत दर्पण पृ. २१. १-ऋग्वेद ३०-३, ३६-७; ३८-७.४- सुराश्वमिन्द्रहवे'-यजुर्वेद । ५-यजुर्वेद अ० १ मं० २५. ६-सत्यार्थ दर्पण पृष्ठ ११. ७-शग्वेद ३-३-१४-२९.
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