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षष्ठम परिच्छेद । [११५ रीय आर्षवेद तो यतियोंकी स्मरणशक्तिके अभाव हो जानेसे लुप्त होगए थे, और उनका पूर्ण ज्ञान उपलब्ध नहीं रहा था परन्तु पश्चात्के मुख्य ग्रन्थोंका आज उपलब्ध न होना भी कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है क्योंकि हम जानते हैं कि भारतवर्षमें धार्मिक प्रभावके कारण समय समयपर कैसे कैसे अत्याचारी राज्यनैतिक परिवर्तन होते रहे थे, जिनसे विपक्षी धर्मके ग्रन्थों और इमारतों पर वेदरद हो आक्रमण किया गया था। पारम्परिक विरोधने राष्ट्रीयताका भाव भी काफूर कर दिया था।
आर्ष वैदिक धर्म अर्थात् जैनधर्मकी सरलता, सुगमता और उत्तमता सर्व प्रकट है; क्योंकि वह एक यथार्थ वैज्ञानिक धर्म है। उसको नीव कार्य कारण के सिद्धान्त पर निर्भर है। उसमें सात तत्व मान गए हैं जो निम्न प्रकार हैं:
(१) जीव वा आत्मा (२) अजीव वा प्रकृति (३) आश्रव अर्थात् पुदलका जीवमें आना ( ४ ) बन्ध अत् कैद (५) संवर अर्थत् पुद्गलके आश्रवको रोकना (६) निर्जश अर्थात् बंधनको तोड़ना (७) और मोक्ष अथ त् छुटकारा वा निवाण ।
विद्याभूषण पी एच. डो आदिने भी यही कहा था कि जनशास्त्र भारतीय इतिहामपर अपूर्व प्रकाश डलते हैं । बर्लिन ( जमनो) विश्वविद्यालय संस्कृत के प्रो. डॉ हेल्मथ बॉन ग्लेमेने माहब भी लिखते हैं कि:जनधर्म मव प्राचीन मैद्धान्तिक मत है जो आजतक अपने जन्मस्थानमें अविकृत रूपमें रहा है । ( Jainism is the oldest philosophical systew that has remaineil quite unchantged in forn in the land of its originalnost upto this day.
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