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चतुर्थ ,पारछेद : , [९५ और वह भी इनके निकट आर्यिका हो गई एवं दुर्धर तप तपकर स्वर्गको गई । श्री गिरनारजी पर जिस गुफामें इन्होंने तपश्चरण किया था, उसमें इनकी एक प्राचीन प्रतिमूर्ति मौजूद है। .
भगवानने दो रोजका उपवास करके प्रथम आहार द्वारावतीमें राजा वरदत्तके यहां लिया था। पश्चात् छप्पन दिन तक संयमी रह कर आपको कुवांर वदी पड़वाके दिन केवलज्ञानका लाभ हुआ। तीनों कालकी और तीनों भवकी चराचर वस्तुका हस्तामलिकवत् ज्ञान आपको भी प्रत्येक तीर्थङ्करकी भांति था। आपने समम्त आर्य खंडमें विहारकर धर्मामृतका पान करा मिती आषाढ़ सुदी सप्तमीको गिरनार पर्वतसे ही निर्वाणपदको प्राप्त किया था। आपके विषयमें भी वह सब बातें हुई थीं जो प्रत्येक तीर्थङ्करके होती हैं। आपका स्मरण हिन्दुओंके यजुर्वेदमें भी है ।*
तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथका जन्म ईस्वी सन्म अनु. मानतः ९४९ (वा ८७७ ?) वर्ष पहिले हुआ था। और भगवान नेमिनाथके मोक्ष जानेके बाद ८३७५० वर्ष बाद हुए थे। आपके पिता बनारसके अधिपति इक्ष्वाकुवंशीय श्री अश्वसेन थे। आप अपनी माता वामादेवीके गर्भ में मीति वैशाख वदी दोजको आए थे और
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* वाजस्यनु प्रसव आवभूवना च विश्चमुवनानि सर्वतः । म नेमिराजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्ठि वर्धयनमानो। अस्मे स्वाहा।
-अध्याय ९ मंत्र २५ । .. एवं प्रभासपुराणमें व्यासजीने लिखा है:. रैवताद्रो जिनो नेमियुगादिविमलानले । .....
ऋषीणा या श्रमादेव मुक्तिमार्पस्य कारणम् ।।.. . .... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com