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ये सत्र प्रमाण भी हमें मनुष्यके प्रारम्भिक इतिहासके कुछ भी समीप - नहीं पहुंचाते, वे केवल यही सिद्ध करते हैं कि उतने प्राचीन कालमें भी मनुष्य अपार उन्नति करली थी, ऐसी उन्नति जिसके लिये उन्हें हजारों -लाखों वर्षोंका समय लगा होगा । अब चीन, इजिप्त, शाल्दिया, इंडिया, अमेरिका किसी ओर भी देखिये इतिहासकार ईसासे आठ२ दश २ हजार वर्ष पूर्वकी मानवीय सभ्यताका उल्लेख विश्वास के साथ करते हैं। जो समय कुछ काल पहले मनुष्यकी गर्भावस्थाका समझा जाता था वह अब उसके गर्भका नहीं, बचाना भी नहीं, प्रौढ़ कालका सिद्ध होता है । जितनी खोज होती जाती हैं उतनी ही अधिक मानवीय सभ्यताकी प्राचीनता सिद्ध होती जाती है । कहां है अब मानवीय सभ्यताका प्रातःकाल ? इससे तो प्राचीन टोमन हमारे समसामयिक से प्रतीत होते हैं, यूनानका सुवर्ण-काल कलका ही समझ पडता है । मिश्रके गुम्मटकारों और हममें केवल थोडेसे दिनों का ही अन्तर पडा प्रतीत होता है । मनुष्यकी प्रथमोत्पत्तिका अध्याय आधुनिक इतिहास हीसे उड गया है। ऐसी अवस्था में 'जैन पुराणकार मानवीय इतिहासके विषयमें यदि संख्यातीत वर्षोंका उल्लेख करें तो इसमें आश्वर्यकी बात ही क्या है ? इसमें कौनसी असम्भाव्यता है ? पुरातत्वज्ञों का अनुभव भी यही है कि मानवीय इतिहास संख्यातीत वा पुराना है ।
दीर्घ शरीर और दीर्घायु ।
दूसरा संशय महापुरुषों के शरीर माप और उनकी दीर्घातिदीर्घ आयुके विषयका है । जो कुछ आजकल देखा सुना जाता है उसके अनुसार - सैकड़ों हजारों धनुत्र ऊंचे शरीर व कोडाकोडी वर्षोंकी आयुपर एकाएकी विश्वास नहीं जमता ।
इस विषय में मैं पाठकोंका ध्यान उन भूगर्भ शास्त्रकी गवेषणाओंकी ओर आकर्षित करता हूं जिनमें प्राचीन कालके बडे २ शरीरधारी जन्तुओंका अस्तित्व सिद्ध हुआ है । उक्त खोजोंसे पचास २ साठ २ फुट लम्बे - प्राणियों के पाषाणावशेष ( Possils) पाये गये हैं। इसने कम्चे क
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