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________________ ८६ ] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम माग । मिती कार्तिक सुदी दूजके दिन भगवानको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। देवोंने सब तीर्थंकरोंकी भांति इनका भी अन्य चार कल्याणकोंके अतिरिक्त ज्ञान कल्याणक मनाया । आप सब तीर्थकरोंकी तरह तीन ज्ञानके धारक जन्महीसे थे। आपके विषयमें भी सब विशेष बातें हुई थीं। फिर सब देशोंमें विहार करके जब कुछ ही दिन आयुके बाकी रह गए तब आपकी दिव्यध्वनि बंद हुई। तब सम्मेदशिखरपर शेष कर्मों का नाश करके भादों सुदी अष्टमीको मोक्ष पधारे। दशवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ राजा हदरथ और रानी सुनंदाके पुत्र थे। चैत्र कृष्ण अष्टमीके दिन आप गर्भमें आकर माष वदी बारसको भद्दलपुरमें जन्मे थे । वर्तमानमें यह नगर मेलसा नामसे ग्वालियर राज्यमें है । आपका विवाह हुआ था। राज्य करके आपने माघ वदी द्वादशीको गृह त्याग दिगंबर भेषमें तपश्चरण किया था। पश्चात् अरिष्ट नगरके राजा पुनर्वसुके यहां आहारं लिया था। फिर तीन वर्ष तप तपकर मिती पौषवदी चतुर्दशीके दिन आप केवलज्ञानी हुए थे । समवशरणके साथ बिहारकर धर्मोपदेश देते हुए आप सम्मेदशिखर पर आन बिराजे थे और वहांसे आसोज सुदी अष्टमीको आपने मुक्ति लाभ किया था । आपके भी जीवनमें वह सब बातें हुई थीं जो प्रत्येक तीर्थङ्करके होती हैं। आपके जन्मके कुछ पहिलेसे धर्मका मार्ग बंद हो चुका था। भगवान शीतलनाथके मोक्ष चले जानेके बाद म्यारहवें तीर्थकरके होनेके पहिले भद्दलपुरके मेघरथ राजाने दान करनेका विचार मंत्री से प्रकट किया। मंत्रीने शास्त्र, अभय, आहार, औषधि इन चार दानोंके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035242
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1943
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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