SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ સનાતન જન. (पाच्या नवेम. हिअडा फुट्टि तडत्ति करि काल क्खेवें काई । दे क्ख हय विहि कहिं ठवइ पइ विणु दुक्खस याई॥ साहु वि लोउ तडफडइ वडत्तणह तणेण । वड्डुप्पणु पुणु पाविअइ हत्थि मोकलडेण ॥ जइ न सु आवइ दुइ घर काइ अहो मुहु तुझु॥ वयणु जु खण्डइ तउ सहिए सो पिउ होइन मुझु। जइ स सणेही तो मुइअ अह जीवइ निन्नेह । विहिंवि पयारेहिं गइअधण किं गज्जइ खल मेह ॥ बप्पीहा पिउ पिउ भणवि कित्तिउ रुअहि हयास । तुह जलि महु पुणु वल्लहइ विहुंवि न प्ररिअ आस ॥ हिअइ खुडुका गोरडी गयणी धुडुइक मेहु । वासारत्ति पवासु अहं विसमा संकडु एहु ॥ तं तेत्तिउ जलु सायर हो सो तेवडु वित्थारु । तिसहे निवारणु पलुविनवि पर धुध्धुअइ असारु ॥ जं दिठ्ठउ सोमग्गहणु असइहिं हासउ निसङ्कः । पिअमाणु स विच्छोह गरु गिलि गिलि राहु मयङ्कः । अन्ने ते दीहर णअण अन्नु तं मुअजु अलु ॥ अन्नु सु घणथणहारु तं अन्नु जि मुहकमलु । अन्नु जि केस कलावु सु अन्नु जि प्राउविहि । जण णिअम्बिणि घडिअ स गुणलावण्णनिहि ॥ पिअसंगमि कउ निद्दडी पिअहाँ परो कखहो केम्ब । मई बिन्निबि विन्नालिआ निद्द न एम्ब न तेम्व ॥ जाइज्जाइ तहिं देसडइ लब्भइ पिचहो पमाणु । जइ आवइ तो आणिअइ अहवा तं जि निवाणु ॥ जइ पवसन्ते सहु न गय न मुअ विओए तस्सु । लज्जि ज्जइ संदेसडा दिन्तिहिं सुहय जणस्सु ॥ खज्जइ नउ कसरकेहिं पिज्जइ नउ घुण्टेहिं । एम्वइ होइ मुहच्छडी पिएं दिढें नयणेहि ॥ सिरि जरखण्डी लोअडी गलि मणियडा नवीस । तोवि गोडा कराविआ मुद्धए उट्ठ वईस ॥ अन्भा लग्गा डुङ्गरिहिं पहिउ रडन्तउ जाइ । जो एहा गिरि गिलणमणु सो किं धणहें धणाई ॥ सिरि चडिआ तोडन्ति फल पुणु डालई मोडन्ति । तवि महद्दम सउणार्दु अवराहिउ न करन्ति ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035241
Book TitleSanatan Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1907
Total Pages412
LanguageEnglish, Hindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, & Book_Gujarati
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy