SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८८ ) हूँ 'पाराशर' । 'अरे श्राप तो कमाल कर रहे है !' उन्होंने कहा, 'बगीचा बनाना है, फल वाले माड़ों के लिए खड्डे खोद रहा हूं।' मेरे मुह से सहसा शब्द निकले 'आप सच्चा प्रादर्श खड़ा कर रहे हैं। उन्होंने विवेक बताया, 'आपकी कृपा से ।' ये पाराशर जी कौन । यह बताने की आवश्यकता है क्या ? शिवपुरी के प्रसिद्ध वकील वैदेहोचरण जी पाराशर, एम. ए. एल. एल. बी. मध्यभारत के भूतपूर्व शिक्षा मन्त्री एवं गज. गढ़ राज्य के भूतपूर्व एडमिनिस्ट्रेटर । 'खेती खुद की' इस कहाबत को श्री पाराशर जी रितार्थ ही नहीं करते, बल्कि बिना बोले वास्तविक काम करने से ही आदर्शता खड़ी होती है, इसको खद के जीवन से प्रमाणित भी कर दिखलाते है। इसके कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पास भाई पाराशर जी बैठे थे। मैने कहा 'कहिये अब के आप मन्त्री बन रहे हैं क्या ?' उन्होंने कहा 'आप तो मुझे आशीर्वाद दीजिये कि मैं काश्तकार बनूं। मैंने उस समय बड़े आदमियों की विवेक भाषा सममी थी परन्तु आज तो मैं उन्हें आदर्श काश्तकार देख रहा हूं। मेरे कहने का आशय यह है कि बुद्धिजीवी मनुष्यों को भी श्रमजीवी बनना वर्तमान समय में बहुत जरूरी हो गया है। श्रम का मतलब यह नहीं कि केवल काश्तकारी ही करें। पढ़े लिखे दफ्तरों में जाने वाले महानुभाव भी, अपने कर्तव्यों का पालन करें, उनके सामने काफी काम पड़ा हुआ होता है । मुझे दफ्तरों में जाने का काम नहीं पड़ता, परन्तु सुनता हूं कि कोई. कोई अधिकारी रात के सात-सात पाठ-आठ बजे तक काम करते हैं और अपने मातहत लोगों को अपनी जीवन प्रणाली से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy