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________________ ( ८६ ) इसी भावना का परिणाम है कि हमारे पढ़े लिखे श्रीमंत और सत्ताधिकारी भी कभी-कभी जगत को यह दिखाने का प्रयत्न करने लगे हैं ताकि जनता को यह ज्ञात हो कि, प्रत्येक मनुष्य की, चाहे वह कितना ही पढ़ा लिखा क्यों न हो, श्रीनंत हो या सत्ताधीश क्यों न हो, श्रमजीवी बनना आवश्यक है । इसमें कोई शक नहीं कि पढ़े लिखे श्रीमंत एवं सत्ताधिकारी की यह प्रवृत्ति प्रशंसनीय है । परन्तु इसके पीछे प्रायः दम्भ की मात्रा विशेष देखी जाती है । इसलिये यह प्रवृत्ति दूसरों के ऊपर कम प्रभाव डालती, दूसरों के लिये आदर्श नहीं बनती । आदर्श उपस्थित करना एक चीज है और दम्भ ढोंग करना दूसरी चोज है । आदर्शवादी उस प्रवृत्ति को खाली दिखावे के लिये नहीं करता । यह तो केवल अपना कर्तव्य समझकर करता ही जाता है । उसका निरन्तर करते रहना यही आदर्श है । इसमें दिखावे की, धूम मचाने की, शौक करने की जरूरत नहीं रहती | मैं इस विषय में दो दृश्य यहां उपस्थित करना चाहता हूँ । अभी-अभी खेतों में अन्नोत्पादन में बाधक आंधी, आवाशीशी के उन्मूलन का आन्दोलन चला । आवाशीशी के पौध ऐसे नहीं होते, जिनको उखाड़ने के लिये सब्बलया गेंती की आवश्यकता पड़े। छोटे-छोटे पौधों को तो बच्चे भी उखाड़ फेंक देते हैं परंतु श्रधा शीशी उन्मूलन करने का आदर्श दिखाने के लिये अधिकारियों की एक सभा होती है, जिसमें मिनिस्टर, कलेक्टर, बैरिस्टर, आडीटर, एडीटर, मास्टर, डाक्टर, डायरेक्टर, रिर्पोटर आदि पढ़े लिखे सभी 'टर' इकट्ठा होते हैं और सभी के हाथ में गेंती होती है । मानो किसी मौ वर्ष के पुराने फाड़ को गूल से उखाड़ना है इस प्रकार कमर से जरा झुके हुए सभी खड़े रहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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