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________________ ( ८२ ) या देव भी बनता है। मेरा तो नम्र मत है कि ऐसे अपराधियों व पापियों को निर्भयता देकर सन्मार्ग पर लाना चाहिये और उनकी शक्ति का उपयोग राष्ट्र, समाज व धर्म के लिये करने का अवकाश देना चाहिये। किसी गन्दे में कोई बहुमूल्य वस्तु पड़ी है तो वहां से उसे निकाल कर उसका सदुपयोग कर लेना यह बुद्धि शालियों के लिये जरूरी है। ३-यहाँ एक बात और विचारणीय है । भारतवर्ष हमेशा से धर्म प्रदान देश रहा है। त्याग भूमि है जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूं। मानव जाति अपराधों को तो करती आई है किंतु उन अपराधों से बचने का प्रयत्न भी हमेशा से होता रहा है । इस कार्य को हमेशा से किया है त्यागी संस्था ने, साधुओं ने । समय-समय पर ऐसे अपराधी मनुष्यों के उद्धार के लिये महापुरुष उत्पन्न हुए जिन्होंने राजपाट वैभव कुटुम्ब परिवार सबको छोड़कर संन्यास लिया और जनता को अपराधों से बचाने का प्रयत्न किया । वे संसार से चल बसे किन्तु अपनो शिष्य परम्परा त्यागियों को छोड़ गये। उन त्यागियों ने भी यही कार्य किया और अब तक करते आये हैं। राष्ट्र के उत्थान में साधु संस्था का बहुत बड़ा हाथ है । जो कार्य गृहस्थ नहीं कर सकते वह कार्य साधु करते हैं क्योंकि उनमें त्याग है, तपस्या है, संयत है । मैंने कई बड़े-बड़े राज्याधिकारियों से निवेदन किया है कि आप लोग साधु संस्था से काम लीजिये । उस संस्था को छोड़ देना देश के लिये भयंकर शाप है। यदि देश का उत्थान करना है तो आज भी जिनमें अद्भुत शक्तियां हों, उन शक्तियों का सदुपयोग कर लीजिये। शिक्षण प्रेमी विद्वान अनुभवी शिक्षण शास्त्री हों उनसे शिक्षण के प्रचार का काम लीजिये । राजनीति में अनुभवी त्यागियों का राजनैतिक क्षेत्र में सलाह मशवरा बीजिये, उपदेश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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