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________________ भारतीय संस्कृति के कुछ प्रतीक भारतवर्ष हमेशा से धर्म-प्रधान देश रहा है। इसकी प्रत्येक दिनचर्या में भी आध्यात्मिक भावना को प्रधान पद दिया गया है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त बल्कि अग्नि संस्कार पर्यन्त की प्रत्येक क्रिया में संस्कार की शाखोक्त विधि दिखलाई गई है और उम विधि में भी कर्तव्य भावना, ईश्वर के प्रति श्रद्धा, गुरुजनों के प्रति बहुमान, जनता के प्रति आत्मीयता इत्यादि बातें दिखलाई गई है। संक्षेप में कहा जाय तो एक भारतीय मानव को, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का अनुयाई क्यों न हो, उसका जीवन परोपकार, सेवाभाव, सदाचार, श्रद्धा प्रेम से युक्त रखने का ही आदेश दिया गया है। स्वार्थवश वह कर्तव्यों से च्युत हो गया तो वह मानवता से गिर गया, ऐसा समझा जायगा, किन्तु उसको अच्छा कोई नहीं समझेगा। A पाश्चात्य संस्कृति और भारतीय संस्कृति में यही मुख्य अन्तर है। पाश्चात्य संस्कृति स्वार्थ परायणता से ओतप्रोत है। भारतीय संस्कृति परमार्थ परायसता को प्रधान स्थान देती है। पाश्चात्य संस्कृति मानव जाति के प्रति प्रेम और दया रखने को कहती है। भारतीय संस्कृति प्राणीमात्र को, चाहे वह एकेन्द्रिय क्यों न हो अपनी ही पात्मा के बराबर समझकर उसके प्रति प्रेम, दया रखने का आदेश करती है । पाश्चात्य संस्कृति में मानव जाति के प्रति प्रेम रखने का संकेत होते हुये भी, निजी स्वार्थ के लिए मानव जाति का संहार करने को भी लोग तैयार हो जायेंगे। भारतीय संस्कृति स्वार्थ सिद्धि के लिए दूसरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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