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________________ ( ६७ ) विद्यार्थी की इच्छा की पूर्ति यदि शिक्षक नहीं करता है, तो दो चार विद्यार्थी मिल कर न केवल वर्तमान पत्रों में ही उसकी बुराई करने से संतोष मानते हैं, बल्कि उसकी जान लेने तक का भी प्रयत्न कर छूटते हैं। कहा जाता है कि यह उच्छृङ्खलता विद्यार्थियों-युवकों में है, परन्तु मेरे ख्याल से यह हवा सर्वत्र सर्वव्यापी फैली हुई है, उसके लिये बहुत कुछ प्रयत्न किये जाते हैं, जिससे ऐसा विषैला वातावरण दूर हो और लोग सच्ची मानवता और सच्चे शिक्षित होने को सार्थक करें। परन्तु इस प्रयत्न में एक बात की मुझे न्यूनता दिखती है और वह यह कि सर्वव्यापी ऐसे विषैले वातावरण के फैलने का मूल कारण क्या है ? उसकी तरफ बहुत कम लोग ध्यान देते हैं। जब तक रोग की उत्पत्ति का मूल कारण नष्ट न किया जाय, तब तक रोग सर्वथा नष्ट नहीं हो सकता। किसी उपचार से कुछ समय के लिए वह रोग दब जाय, यह हो सकता है, किन्तु दबी हुई चीज कभी न कभी निमित्त मिलने से उठ ही आती है। इसलिये होना यह चाहिये कि हमें उसके मूल कारणों की खोज करके उसको दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये । वर्तमान समय की विद्यार्थियों और युवकों में ही नहीं, सर्वत्र फैली हुई उच्छ्रबलता के कारण मुझे जो दिखते हैं, उनमें से कुछ ये हैं। १-भारतीय संस्कृति का प्रतीक हमेशा से अपनी प्रात्मा से जो प्रतिकूल है, उसका आचरण दूसरे के साथ नहीं करना, यह रहा है किन्तु जब से पाश्चात्य संस्कृति ने अर्थात् अपने स्वार्थ के लिए दूसरे का संहार करने की वृत्तिाने प्रवेश किया, तब से हमारे देश के लोगों की मनोवृत्तियों में परिवर्तन हुआ है। 'प्राध्यात्मवाद' का महत्व ही यही था और है कि मनुष्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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