SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६० ) अपनी निजी भावना से आर्थिक सहायता क्रम देती है। जहां जडवाद की उपासना का साम्राज्य फैला हो वहां संस्कृति, साहित्य, आध्यात्म, मानवता, चरित्रनिर्माण इत्यादि बातों की तरफ कौन ध्यान देता है ? और यही कारण था और है कि केवल संस्कृत पढने वाली शिक्षण संस्थाओं में भी समय को देख कर पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना पड़ा । अर्थात संस्कृत के साथ हिन्दी, अँग्रेजी आदि भाषाएँ रख कर उसका भी अध्ययन कराया जाने लगा, बल्कि किसी अंश में ऐसी संस्थाओं में उद्योग का भी प्रबन्ध किया जाने लगा । - इतना होते हुए भी, यह बात तो निर्विवाद सिद्ध है किऐसी संस्थाओं में 'चरित्र निर्माण' का उद्देश्य जितना पफल हो सकता है, उतना शासकीय संस्थाओं में नहीं । इसके कई कारण हैं, जिनमें से कुछ ये हैं ( १ ) प्रायः ऐसी संस्थाएँ, जो प्राचीन श्राश्रमों के अनुकरण रूप स्थापित होती हैं, उसके लिए स्थान खास पसन्दगी का निश्चित किया जाता है। जहां आजकल का दूषित वातावरण न हो । (२) ऐसी संस्थाओं का नेतृत्व प्रायः एक व्यक्ति करता है, जिसके आचरण का प्रभाव बालकों पर पड़ता है । ( ३ ) ऐसी संस्थाओं में छात्रालय का रखना अनिवार्य होता है। क्योंकि इनमें प्रायः गरीब और मध्यम वर्ग के लोग ही अते हैं। एक स्थान या एक प्रान्त के नहीं, किन्तु भिन्न-भिन्न प्रान्तों के दूर-दूर के आते हैं । इनके लिए मासिक निश्चित छात्र : बत्ति देकर या स्वतन्त्र भोजनालय, स्थान, रोशनी आदि साधनों f दे करके भी छात्रालय का रखना अनिवार्य हो जाता है । जहाँ इस प्रकार बाहर के विद्यार्थी आते हों, ऐसी शासकीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy