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________________ ( ५६ ) के दुर्गुण भी डालते हैं। प्राय: बीड़ी, सिगरेट, सिनेमा आदि व्यसनों से तो शायद हो कोई भाग्यशाली शिक्षक बचा होगा। उन सारी बुराइयों का प्रभाव भी विद्यार्थियों पर पड़े बिना नहीं रहता। ___एक तरफ 'चरित्र निर्माण' से नीचे गिरने वाली बुराइयाँ शालाओं में से ही मिलती रहती हैं। दूसरी तरफ से जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूं, अगरेजों के जमाने में 'कला' के नाम से हमारे जीवन में ऐसी बुराइयाँ ओत-प्रोत हो गई हैं, जो वस्तुतः जीवनस्तर को नीचे गिराने वाली होते हुए भी, उसको हम उन्नति का साधन मान रहे हैं। जैसे-सिनेमा, सह-शिक्षण, युवती छोकरियों के नृत्य शृङ्गार से भरी हुई नवल-कथाएं, शृङ्गार-युक्त चित्र इत्यादि। "प्रवत्ति वृत्ति की द्योतक होती है," ऐसा एक सिद्धांत है। प्रवृत्ति पर से मानव की वृत्तियों का अनुमान किया जाता है। उपयुक्त बातों से आज मानव समाज की पवित्रता का कितना नाश हो रहा है, यह जानते हुए भी, कला के नाम से किवा देश को उन्नति के बहाने से इसका प्रचार करना, इसको उत्तेजना देना यह कहाँ तक उचित है ? यह समझदारों के लिये समझना कोई कठिन बात नहीं है। बेशक सिनेमा जैसी चीज को मैं प्रचार का साधन मानता हूं और जैसा कि मैं पहले अपने एक लेख में लिख चका हूं, हमारी संस्कृति, हमारी प्राध्यात्मिकता, हमारी चरित्र-निर्माण करने वाली शिक्षण-प्रणाली इत्यादि बातों के लिए साधन का उपयोग किया जाय, तो यही साधन देश के लिए-जनकल्याण के लिए आशीर्वाद रूप हो सकता है परन्तु जब तक इस साधन का उपयोग जीवन को नीचे गिराने वाली फिल्मों के प्रचार में किया जाता है, तब तक यह व्यवसाय देश के लिए शाप रूप हो रहा है और होता रहेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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