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________________ ( ३८ ) "प्रवत्ति वृत्ति की द्योतक है" व्यक्ति या समाज की प्रवृत्ति पर से ही उनकी वृत्ति का अनुमान किया जा सकता है । आज हमारे देश में शिक्षण प्रवत्ति में भी जो कुछ विघातक बातें प्रचलित देखी जाती हैं, वह हमारे देश के उच्चकोटि के शासकों की वत्ति का ही परिणाम कही जा सकती है। किन्तु, यह सद्भाग्य की निशानी है कि जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूं, हमारी शिक्षा में जो न्यूनतायें हैं, वे छोटे कुछ महानुभावों के ध्यान में आने लगी हैं और एक हवा ऐसी चली है कि, हमारे देश के योग्य शिक्षा में आमूलन परिवर्तन करके नवीन शिक्षण प्रणाली प्रचलित की नाय तो साधन इस समय शिक्षा प्रचार के लिए प्रचलित है, उन साधनों का भी इस प्रकार सुचारु रूप से उपयोग किया नाथ । जिससे वे साधन शिक्षण के हेतु की सफलता में बाधक न होते हुये साधक बन जाय । ऐसे अनेक साधनों में से एक साधन सिनेमा भी है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि, सिनेमा ने आज सारे संसार को मानवता से कितना नीचे गिरा दिया है। मानव जाति का नैतिक पतन किया है। पुण्य पाप की भावनाओं को न मानने वाले 'ऋणं कृत्वा पृतं भिवेत्' इस सिद्धान्त को मानने वाले, केवल ऐहिक (पौद्गलिक ) सुखों में ही जीवन की सार्थकता समझने वाले और केवल अपने स्वार्थ के लिए संसार का संहार करना पड़े, तो भी उसमें अनुचितता न समझने वाले लोगों के लिये सिनेमा भले ही एक अपने आनन्द का साधन बना हो, किन्तु जिस भारतीय संस्कृति के कुछ प्रतीक ऊपर दिखाये हैं, उस. भारतीय प्रजा के लिये सिनेमा सचमुच ही आदरणीय नहीं हो सकता है। किन्तु जैसा मैं ऊपर कह चुका हूं, कोई भी साधन लाभप्रद बन सकता है और हानिप्रद भी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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