________________
विशेष दुःख की बात यह है, कि मध्यभारत जैसा सात्विक और अहिंसक प्रान्त, कि जहाँ बहुत अन्न उत्पन्न होता है, जहाँ को मनुष्य जाति धर्म परायण है, जहाँ कुदरत की कृपा इतनी है कि प्रान्त अपना पोपण करने के अतिरिक्त, हजारों, लाखों मन अनाज, दूसरे दुखी देशों को भेज सकता है और भेज रहा है। उस प्रान्त के शासनाधिकारी, मच्छी के उत्पादन को अशोभनीय और अनिच्छनीय प्रवति का अनुकरण करने जा रहे हैं। प्रकृति के नियमों का वे थोड़ा अभ्यास करें। जहाँ जहाँ प्रकृति ने दुष्काल, भूकम्प, बाढ़, रोग, लड़ाई, अग्नि प्रकोप आदि अपने शस्त्रों का प्रयोग किया है, वहाँ ऐसा क्यों हुआ, और मध्यभारत तथा अन्य ऐसे प्रान्तों में ऐसा उपद्रव क्यों नहीं हुआ, इसके कारणों को खोजेंगे, तो उन्हें पता चलेगा कि प्रकृति का प्रकोप वहाँ ही अधिक हुआ है, होता है, जहाँ मानव जाति, अपनी मानवता को छोड़ अपने स्थार्थ के लिए दूसरे जीवों के संहार की .. प्रवृत्ति में पड़ती है। इसलिए:
मेरा अन्त में अनुरोध है कि मच्छी का उत्पादन या ऐसी भयंकर हिंसा जन्य प्रवृत्ति द्वारा मानव जाति के रक्षण का विचार छोड़ दिया जाय । तात्विक दृष्टि से भी देखा जाय तो, हिंसा जन्य प्रवृत्तियों द्वारा न कोई देश सुखी हुआ है, और न होगा। आगे या पीछे, एक या दूसरे तरीके से उसका नाश अवश्य हुआ है। इसलिए, भगवान महावीर, महात्मा बुद्ध और अभी अभी हमारे युग में महात्मा गाँधी ने "जीवो और जीने दो' का सन्देश सुनाया है. उसके अनुकूल हमारा जीवन बना कर हमें किमी भी जीव की हिंसा के द्वारा हमारे देश की सुख की प्राशा छोड़ देना चाहिये ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com