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मच्छी के उत्पादन द्वारा मानव जीवन की रक्षा
भारतवर्ष की संस्कृति अन्य देशों से सबंधा भिन्न है, अन्य देश मानव, मानव के साथ हमदर्दी, प्रेम रखने की संस्कृति रखते हैं, तथा साथ साथ अपने स्वार्थ के कारण दूसरों का संहार करना भी कर्तव्य समझते हैं। इससे विपरीत, भारतीय संस्कृति, जिसमें प्राण हैं, जीव है, चेतना है, उन सब के साथ समभाव रखने का आदेश करती है।
'श्रात्मानः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्"
अपनी आत्मा से जो प्रतिकूल हो, उसका व्यवहार दूसरों के साथ न करना, यह भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति' अपनी आत्मा के बराबर सबकी आत्मा को देखना, यह भारतीय संस्कृति है । और यही कारण है कि जीव छोटा हो बड़ा, एकेन्द्रीय हो या पन्चेन्द्रीय मनुष्य हो किंवा वनस्पति, सब के साथ समान भाव रखकर किसी को कष्ट न हो ऐसा बर्ताव करना, यह सिद्धान्त है ।
भारत के तीनों मुख्य धर्म-सनातन, जैन और बौद्ध में प्रतिपादित किया गया है कि किसी भी जीव को कष्ट पहुंचाना, इसी का नाम हिंसा है। किन्तु जीवन यापन करने में अनिवार्य हिंसा हो जाती है, जैसे भोजन के लिए अन्न और फल फूल का भक्षण आदि, उस अनिवार्य हिंसा का बचाव करने लिए ही
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