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________________ भारतवर्ष में कहा जाता है कि जुदे-जुदे राज्यों में शासकीय संस्थाओं की अपेक्षा ऐसी संस्थायें अधिक हैं। मध्यभारत में पसी संस्थाओं की संख्या बहुत कम है। परन्तु अब शासन का ध्यान उस तरफ गया है और ऐसी संस्थाओं को प्रोत्साहित भी किया जाता है। ३-प्रशासकीय संस्थाओं की आर्थिक स्थिति समाज के दान पर आधार रखकर चलने वाली संस्थायें प्रायः आर्थिक कठिनाइयों का सामना अवश्य करती ही रहती है। संस्था छोटी हो चाहे बड़ी, प्रायः इसका सभी को अनुभव हो रहा है, ऐसा मेरा मानना है । ५० वर्ष से भारत की पैदलयात्रा करते हुये, शिक्षण क्षेत्र के एक विद्यार्थी की हैसियत से, प्रायः सब जगह संस्थाओं को देखने का तथा उनकी बाघ और आन्तरिक व्यवस्थामों को समझने का प्रयत्न करता रहता हूं। उस सारे अनुभव का निष्कर्ष अगर कहूं तो यह है: जिस संस्था के लिये किसी व्यक्ति या व्यक्तियों ने लाखों या करोड़ों रुपये अलग रखे हों और उसके व्याज में से संस्था चलाई जाती हो ऐसी, अथवा दयालबाग की तरह एक व्यापारिक दृष्टि से व्यापार द्वारा लाखों रुपये पैदा करना और उसमें से संस्था चलाना, ऐसी संस्थाओं को छोड़कर, जो संस्थाएं केवल समाज के चन्दे पर चलाई जाती हैं, उन संस्थाओं को आर्थिक कठिनाइयों का सामना अवश्य करना पड़ता है। सामान संस्थाओं की बात तो दूर रही, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी और विश्व भारती जैसी महान संस्थाओं का वार्षिक घाटा भी किसी वानी श्रीमन्त द्वारा या जनता के द्वारा पूरा किया जाता है। महात्मा गांधी जी का अहमदाबाद का आश्रम, मावनगर का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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