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समरसिंह था । दम्पत्तिद्वय को अच्छी तरह से घर का कार्य उत्तरदायित्वपूर्वक चलाते हुए देखकर आज शाहने अपनी अंतिमावस्था को निकट जान आचार्य श्री देवगुप्तसूरिजी को आमंत्रित कर अपने यहाँ चुलाया । गुरुवर्य के आने पर आज शाहने विनयपूर्वक अर्ज़ की " गुरुवर्य ! मेरा आत्मकल्याण शीघ्र हो ऐसी श्रज्ञा फरमाइये " आचार्यश्री के सदुपदेश के परिणामस्वरूप आज शाहने सातों क्षेत्रों में मनचाहा धन खर्च किया । उसने अपने भाईयों को भी खूब धन देकर सम्पत्तिशाली बनाया तथा आप स्वयं आचार्यश्री के चरणों में रहते हुए धर्म कार्य करते हुए अन्त में अनशन पूर्वक देहत्याग कर स्वर्गधाम को सिधाया ।
गोसलने भी अपनी कुशलता से संघपति के पद को प्राप्त किया । जिस प्रकार वह राज्य और व्यापार के कार्यों में दक्ष था उसी प्रकार वह धर्म आदि के कार्यों में भी सदा अग्रसर रहता था । गोसल अपना जीवन सर्व प्रकार से सुखपूर्वक बिता रहा था । उसके तीन पुत्ररत्न हुए । प्रत्येक पुत्र गुणी और प्रखर बुद्धिशाली था । वे सबके सब अपने कुल को दीपायमान करने वाले थे जिनके नाम क्रम से ये थे - आशाधर, देशल और लावण्यसिंह | गोसलने इनकी शिक्षा के लिये उचित प्रबंध किया | जब ये युवावस्था को प्राप्त हुए तो आशाधर का रत्नश्री से, देशल का भोलीका से तथा लावण्यसिंह का लक्ष्मी से विवाह किया गया। ये तीनों कन्याऐं रूपवती व शीलगुण सम्पन्न थीं। तीनों पुत्र शिक्षा पूर्ण
१ आजद शाहा के कितने भाई थे वह प्रबन्धकारने खुलासा नहीं किया है ।
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