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घेष्ठिगोत्र और समरसिंह। दिन जिनदेवने आचार्यश्री से पूछा कि गुरु महाराज ! बताइये मेरी आयु का कितना समय और अवशेष है ? आचार्यश्रीने अनुमान-ज्ञान द्वारा बतलाया कि तुम्हारी आयु अब केवल ३ मास
और शेष है । यह सुनकर जिनदेव उसी दिनसे धर्माराधन में जुट गया और अन्तमें पाराधना द्वारा अनशनपूर्वक स्वर्गवास का प्राप्त किया । नागेन्द्रकुमारने भी अपने पिता को बहुत सहायता धर्माराधन में दी तथा पिता की मृत्युके पश्चात् भी लौकिक क्रिया सम्यक् प्रकारसे की।
नागेन्द्र कुमार अपनी पितृभक्तिद्वारा पहले ही से जगतवल्लभ बन चुका था। पिता के स्थानपर प्रविष्ठित होकर उसने सब कार्यों को अच्छी तरहसे संभाल लिया । अपनी धैर्यता, कर्त्तव्यपरायणता, परोपकारिता और गंभीरता के कारण वह दूर दूर तक प्रख्यात हो गया। तीर्थयात्रा के लिये कई संघ निकालकर तथा स्वामिवात्सल्य आदि द्वारा नागेन्द्रने संघकी खूब सेवा की। जिन-मन्दिरों का निर्माण तथा जीर्णोद्धार कराकर नागेन्द्रने अक्षय पुण्य उपार्जन किया तथा गुरुदेव की सेवामें वह सदैव तत्पर रहा। साधर्मियों की सहायता और सन्मान करना तो उसको बहुत सुहाता था।
नागेन्द्र के भी एक पुत्र हुआ। हस्तरेखा के अनुरूप उस का नाम ' सलक्षण ' रखा गया । वास्तवमें वह था भी ऐसा ही सौभाग्यशाली। वह सुलक्षणधारी तथा बुद्धिशाली था। वह छोटी वयसमें ही कार्य-कलादच तथा प्रवीण हो गया था । नागेन्द्रने
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