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घेष्टिगोत्र और समरसिंह। प्रकार महाराजा चेटक, उदाई, श्रेणिक और संतानिक जैसे क्षत्रिय; इन्द्रभूति, अग्निभूति, ऋषभदत्त और भृगु जैसे ब्राह्मण; भानन्द, कामदेव, संख, पोक्खली और महाशतक जैसे वैश्योंने
आत्मकल्याण करने का पथ अवलम्बन किया ठीक उसी प्रकार ऊँच और नीच के भहे भेद को भूल कर अर्जुनमाली, हरकेशी
और मैतार्य जैसे शूद्र और अतिशूद्र लोगोंने भी उन सब की तरह उसी उच्च पथ का बराबरी से अवलम्बन किया। उस समय भी विरोधियोंने असहयोग करने में कुछ कसर नहीं रखी । उन माततायोंने बागी बन कर शांत मूर्ति भगवान महावीर के साथ कई तरह के दुर्व्यवहार किये परंतु वे अंत में सब विफल मनोरय हुए कारण कि भगवानने परम सत्याग्रही की तरह अहिंसक रह कर प्रकोप के बदले उल्टी उन पर दयादृष्टि ही रखी। अन्त में उन बागियोंने भगवान की इस उपकारवृत्ति पर मुग्ध हो कर भगवान के बताए हुए मार्ग का अनुसरण किया । भगवान महाचीर स्वामीने उस समय की विषमता को मिटाकर सब को समान प्रकार से समभावी, नीतिज्ञ और सदाचारी बनाये रखने के उद्देश्य से शक्तियों को संगठित रखने के लिये एक संघ की स्थापना की। संघ की स्थापना होने से शांति का साम्राज्य स्थापित हो गया ।
उपर्युक्त कथन को प्रमाणित करने वाला एक शिलालेख , देखो जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा पृष्ट १६३ वाँ
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