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________________ १४ ज्ञानी० ॥ १॥ (मिलत) भवितव्यताका जोर जिसीसे देववचन विसराया है । रह्या काम अधूरा, फिर भी लक्ष्मी किनारा पाया है । देव कृपाकर भूगर्भसे बिम्ब चार प्रगटाया है। सुकुसुमकी वरसा, देखके संघ सकल हरषाया है । एक बिंब तो गुप्त हुवा. तीनोंको मन्दिरमें लाये हैं । सोजत कापरडे, अरु पीपाड़ नगरमें ठाये हैं । (छूट ) संवत् सोलह इठान्तरे, वैशाख पूर्ण मासजी । मरुधर धीश 'गजसिंह' का जोधाणा में वासजी। जिसके विजयराज में, प्रतिष्ठा हुई सुखकारजी । संघ चतुर्विध महोत्सव कीनो, वरत्या जय जयकारजी । (शेर) चौमुख प्रतिमा चार चतुर गति चूरे । भलो० । मूल नायक श्री पार्श्वनाथ सुखपुरे। संघमें हुवा आनंद मंगल गुणगावे । भलो । मिल नर नारी का वृन्द पार्श्व मन ध्यावे ॥ ( दौड़ ) बढ़ा पाप का प्रचार । छोड़ि सेव भक्ति सार । जिससे पुन्य गये परवार । हुवा संघ बैकार २। छोड़ी मन्दिर की छाप । लगा अधिष्टायक का शाप । अन्न नहीं मिलता है धाप । देखो आशातना का पाप २ । (मिलत) आशातना का पाप जबर है परभव में दुःख पावेगा । ज्ञानी० ॥ २ ॥ (मिलत) प्रबन्ध नहीं सेवा पूजा का, तूट फूट होने लागी । जो सेठ लल्लुभाई के हृदय में भक्ति जागी । फिर विजय नेमिसूरीश्वर आये मारवाड़ में बड़ा भागी। घाणेराव पीपाद जोषांणे, पीलाड़े भक्ति जागी । अहमदाबाद, पालडी, पाली, संघ एकठा हो सागी । जीर्णोद्धार कराया जिनका गुण गावे शासम रागी ॥ (छूट) उगणसे पीचंतरे वसंत पंचमी बुधवारजी । हुई प्रविष्टा भानंद में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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