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ऐतिहासिक प्रमाण ।
२३१ वि. सं. १३९६ में प्रतिष्टित हुई सुपार्श्वनाथ भगवान की मार्ति वीरमगाम के भजित जिनालय में स्थित है। (बुद्धि० भाग १ लेख संख्या १४९३)
सिद्धसेनसूरि नाणकोयगच्छ के सिद्धसेनसूरिद्वारा वि. सं. १३१ (!७)३ में प्रतिष्टित शांतिनाथ भगवान् का बिम्ब दरापरा जिनमन्दिर में है । ( बुद्धि० भाग २ रा लेख संख्या २५)
जजग ( जगत् ) मूरि ब्रह्माणगच्छ के जज्जग ( क ) सूरिद्वारा वि. सं. १३३० में प्रतिष्टित हुए बिम्ब सलखणपुर, संखेश्वर और पाटण के जिन मन्दिरों में हैं । (जिन वि० भाग २ लेख संख्या ४७०, ४८०, ४९०, ४९७, ५१८ और ५१६) एवं वि. सं. १३४९ में प्रतिष्टित नेमीश्वर बिंब और पं. रत्नकी मूर्ति सलखणपुर और पाटण में पंचासरा पार्श्वनाथ जिनमन्दिर में मौजूद हैं। (जिन वि० भाग २ रा लेख संख्या ४७३, ५०९) और वि. सं. १३८२ में प्रतिष्टित श्रीशांतिनाथ जिनबिंब खंभातमें नवपल्लव पार्थ जिनालय में है। (बुद्धि० भाग २ लेख संख्या १०६३ इन जजगसूरि को प्रबंधकारने जगत्सूरि के नाम से लिखा है।
[उपसंहार]-संघपति देसलशाह और उन के प्रतापी वीरवर पुत्ररत्न समरसिंहने जिनशासन की तन-मन-धन से खूब सेवा की । इनके वंशज भी बाद में ऐसे ही धर्म--प्रेमी और व्रत
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