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________________ १८६ समरसिंह सिद्धसूरिजी के साथ देसलशाह पर्वतपर चढ़ने लगे । उस समय की छटा अवर्णनीय थी। पर्वत की झाड़ियों में पक्षियों की सुमधुर बोली, झरने की मनोहर ध्वनि आदि नैसर्गिक आनंदों का अनुभव करते हुए देशलशाह अपने तीनों पुत्रों सहित प्रसन्नतापूर्वक पर्वतपर चढ़ रहे थे । प्रथम प्रवेश में युगादीश्वर की माता मरुदेवी के दर्शन हुए। माता को नमस्कार कर वे श्रीशांतिनाथ भगवान् के मन्दिर में पधारे । वहाँ पूजा करने के पश्चात् सं. देसलशाहने संघ सहित श्रीआदिनाथ भगवान की पूजा बड़े ही आनंद पूर्वक की । अपने द्वारा उद्धारित कपर्दियक्ष की मूर्ति का अवलोकन कर सं० देसलशाह बहुत संतुष्ट हुए । फिर वहाँ से आगे चल कर संघपति देसलशाहने फहराती ध्वजाओं वाले मन्दिर को टकटकी लगा कर देखा और अनुक्रम से संघ सहित युगादि जिन के मन्दिर के सिंहद्वार पर पहुँचे । वहाँ से युगादि जिन के दर्शन कर परम तुष्ट हो कर देशलशाहने द्रव्य इस प्रकार वित्तीर्ण किया कि सब ओर सुवर्ण, वस्त्र, मोती और प्राभूषणों की वृष्टि दृष्टिगोचर होने लगी। इस के वाद मन्दिर में प्रवेश कर अपने द्वारा निर्माण कराई हुई मादिजिन की प्रतिमा को बंदन करने की उत्कट अभिलाषा व उत्सुकता से संघपति देसन बढ़ते हुए आदिनाथ के समीप पहुँचे । दर्शन करते हुए दिल को बड़ा ही आनन्द होता था। भक्तिपूर्वक प्रणाम करने के पश्चात् उस नेप्य मूर्ति को पुष्पों से पूज कर प्रदक्षिणा देते हुए सघपति देसनशाहने कोटाकोटि चैत्य में स्थित महंतों की भी पूजा की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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